फल बीज संरचना पुष्पी सूत्र
फल
- फल पुष्पी पादपों का एक प्रमुख अभिलक्षण है। यह एक परिपक्व अंडाशय होता है जो निषेचन के बाद विकसित होता है। यदि फल बिना निषेचन के विकसित - हो तो उसे अनिषेकी (पारर्थेनोकर्णिक) फल कहते हैं।
- प्रायः फल में एक भित्ति अथवा फल भित्ति तथा बीज होते हैं। फल भित्ति शुष्क अथवा गूदेदार हो सकती है। जब फल भित्ति मोटी तथा गूदेदार होती है तब उसमें एक बाहरी भित्ति होती जिसे बाह्यफल भित्ति कहते हैं। इसके मध्य में मध्यफल भित्ति तथा भीतरी ओर अंतः फल भित्ति होती है।
- आम तथा नारियल में फल के प्रकार को अष्ठिल (ड्रप) कहते हैं . ये फल एकांडपी ऊर्ध्वर्ती अंडाशय से विकसित होते हैं और इनमें एक बीज होता है।
- आम में फल भित्ति बाह्यफल भित्ति, गूदेदार एवं खाने योग्य मध्यफल भित्ति तथा भीतरी कठोर पथरीली अंतःफल भित्ति के सुस्पष्ट रूप से विभेदित होती है। नारियल में मध्यफल भित्ति तंतुमयी होती है।
बीज
- निषेचन के बाद बीजांड से बीज बन जाते हैं। बीज में प्रायः एक बीजावरण तथा भ्रूण होता है। भ्रूण में एक मूलांकुर, एक भ्रूणीय अक्ष तथा एक (गेहूं, मक्का) अथवा दो (चना, मटर) बीजपत्र होते हैं।
द्विबीजपत्री बीज की संरचना
- बीज की बाहरी परत को बीजावरण कहते हैं । बीजावरण की दो सतह होती हैं बाहरी को बीजचोल और भीतरी स्तह को टेगमेन कहते हैं। बीज पर एक क्षत चिह्न की तरह का ऊर्ध्व होता है जिसके द्वारा बीज फल से जुड़ा रहता है। इसे नाभिका कहते हैं। प्रत्येक बीज में नाभिका के ऊपर छिद्र होता है जिसे बीजांडद्वार कहते हैं। बीजावरण हटाने के बाद आप बीज पत्रों के बीच भ्रूण को देख सकते हैं। भ्रूण में एक भ्रूणीय अक्ष और दो गूदेदार बीज पत्र होते हैं। बीज पत्रों में भोज्य पदार्थ संचित रहता है। अक्ष के निचले नुकीले भाग को मूलांकुर तथा ऊपरी पत्तीदार भाग को प्रांकुर कहते है भ्रूणपोष भोजन संग्रह करने वाला ऊतक है जो द्विनिषेचन के परिणामस्वरूप बनते हैं। चना, सेम तथा मटर में भ्रूणपोष पतला होता है। इसलिए ये अभ्रूणपोषी हैं जबकि अरंड में यह गूदेदार होता है (भ्रूण पोषी है)।
2 एकबीजपत्री बीज की संरचना
- प्रायः एकबीजपत्री बीज भ्रूणपोषी होते हैं लेकिन उनमें से कुछ अभ्रूणपोषी होते हैं। उदाहरणतः आर्किड। अनाज के बीजों जैसे मक्का में बीजावरण झिल्लीदार, तथा फल भित्ति से संग्लित होता है।
- भ्रूणपोष स्थूलीय होता है और भोजन का संग्रहण करता है। भ्रूणपोष की बाहरी भित्ति भ्रूण से एक प्रोटीनी सतह द्वारा अलग होती है जिसे एल्यूरोन सतह कहते हैं।
- भ्रूण आकार में छोटा होता है और यह भ्रूण पोष के एक सिरे पर खाँचे में स्थित होता है। इसमें एक बड़ा तथा ढालाकार बीजपत्र होता है जिसे स्कुटेलम कहते हैं। इसमें एक छोटा अक्ष होता है जिसमें प्रांकुर तथा मूलांकुर होते हैं। प्रांकुर तथा मूलांकुर एक चादर से ढके होते हैं, जिसे क्रमशः प्रांकुरचोल तथा मूलांकुरचोल कहते हैं।
एक प्ररूपी पुष्पीपादप (एंजियोस्पर्म) का अर्द्धतकनीकी विवरण
- पुष्पीपादप को वर्णित करने के लिए बहुत से आकारिकी अभिलक्षणों का उपयोग किया जाता है। पुष्पीपादपों का वर्णन संक्षिप्त, सरल तथा वैज्ञानिक भाषा में क्रमवार होना चाहिए।
- पौधे के वर्णन में उसकी प्रकृति, कायिक अभिलक्षण मूल, तना तथा पत्तियाँ और उसके बाद पुष्पी अभिलक्षण, पुष्प विन्यास, फूल के भाग का वर्णन आता है।
- पौधे के विभिन्न भागों के वर्णन के बाद पुष्पी भाग के पुष्पी चित्र तथा पुष्पी सूत्र बताने पड़ते हैं।
- पुष्पी सूत्र को कुछ संकेतों द्वारा इंगित किया जाता है।
- पुष्पी सूत्र में सहपत्र को Br से,
- केल्किस को K से,
- कोरोला को C से,
- परिदल पुंज को P से,
- पुमंग को A से तथा
- जायांग को G से लिखते हैं।
- ऊर्ध्ववर्ती अंडाशय को G और अधोवर्ती अंडाशय को G से लिखते हैं।
- नर फूल के लिए मादा के लिए तथा द्विलिंगी के लिए चिह्नों से इंगित करते हैं।
- त्रिज्य सममिति को '' तथा एक व्यास सममित को '%' इंगित करते हैं।
- युक्त दलों की संख्या को ब्रेकेट से बंद करते हैं और आसंजन को पुष्पी चिह्नों के ऊपर रेखा खींचते हैं।
- पुष्पीचित्र से फूल के भागों की संख्या, उनके विन्यस्त क्रम और उनके संबंध के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
- मातृ अक्ष की स्थिति फूल के सापेक्ष होती है जिसे डॉट द्वारा पुष्पी चित्र के ऊपर इंगित करते हैं।
- केल्किस, कोरोला, पुमंग तथा जायांग क्रमवार चक्कर में दिखाए जाते हैं। कैल्किस सबसे बाहर की ओर तथा जायांग सबसे भीतर होता है। यह सासंजन तथा आसंजन को चक्कर के भागों तथा चक्कर के बीचों को इंगित करता है।