माइटोकोंड्रिया लवक हरितलवक राइबोसोम
सूत्रकणिका (माइटोकोंड्रिया)
- सूत्रकणिका को जब तक विशेष रूप से अभिरंजित नहीं किया जाता तब तक सूक्ष्मदर्शी द्वारा इसे आसानी से नहीं देखा जा सकता है। प्रत्येक कोशिका में सूत्रकणिका की संख्या भिन्न होती है। यह उसकी कार्यिकी सक्रियता पर निर्भर करती है।
- ये आकृति व आकार में भिन्न होती है। यह तश्तरीनुमा बेलनाकार आकृति की होती है जो 1.0-4.1 माइक्रोमीटर लंबी व 0.2-1 माइक्रोमीटर (औसत 0.5 माइक्रोमीटर) व्यास की होती है।
- सूत्रकणिका एक दोहरी झिल्ली युक्त संरचना होती है, जिसकी बाहरी झिल्ली व भीतरी झिल्ली इसकी अवकाशिका को दो स्पष्ट जलीय कक्षों बाह्य कक्ष व भीतरी कक्ष में विभाजित करती है। भीतरी कक्ष जो घने व समांगी पदार्थ से भरा होता है आधात्री मैट्रिक्स) कहते हैं। बाह्यकला सूत्रकणिका की बाह्य सतत सीमा बनाती है।
- इसकी अंतझिल्ली कई आधात्री की तरफ अंतरवलन बनाती है जिसे क्रिस्टी (एक वचन-क्रिस्टो) कहते हैं क्रिस्टी इसके क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं। इसकी दोनों झिल्लयों में इनसे संबंधित विशेष एंजाइम मिलते हैं, जो सूत्रकणिका के कार्य से संबंधित हैं।
- सूत्रकणिका का वायवीय श्वसन से संबंध होता हैं। इनमें कोशिकीय ऊर्जा एटीपी के रूप में उत्पादित होती हैं। इस कारण से सूत्रकणिका को कोशिका का शक्ति गृह कहते हैं।
- सूत्रकणिका के आधात्री में एकल वृत्ताकार डीएनए अणु व कुछ आरएनए राइबोसोम्स (70s) तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं।
- सूत्रकणिका विखंडन द्वारा विभाजित होती है।
5 लवक (प्लास्टिड)
- लवक सभी पादप कोशिकाओं एवं कुछ प्रोटोजोआ जैसे यूग्लिना में मिलते हैं।
- ये आकार में बड़े होने के कारण सूक्ष्मदर्शी से आसानी से दिखाई पड़ते हैं। इसमें विशिष्ट प्रकार के वर्णक मिलने के कारण पौधे भिन्न-भिन्न रंग के दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न प्रकार के वर्णकों के आधार पर लवक कई तरह के होते हैं जैसे-हरित लवक, वर्णीलवक व अवर्णीलवक।
- हरित लवकों में पर्णहरित वर्णक व केरोटिनॉइड वर्णक मिलते हैं जो प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं।
- वर्णीलवकों में वसा विलेय केरोटिनॉइड वर्णक जैसे- केरोटीन, जैथोफिल व अन्य दूसरे मिलते हैं। इनके कारण पादपों में पीले, नारंगी व लाल रंग दिखाई पड़ते हैं।
- अवर्णी लवक विभिन्न आकृति एवं आकार के रंगहीन लवक होते हैं जिनमें खाद्य पदार्थ संचित रहते हैं: मंडलवक में मंड के रूप में कार्बोहाइड्रेट संचित होता है; जैसे- आलू; तेल लवक में तेल व वसा तथा
- प्रोटीन लवक में प्रोटीन का भंडारण होता है।
हरितलवक
- हरे पौधों के अधिकतर हरितलवक पत्ती की पर्णमध्योतक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
- हरित लवक लेंस के आकार के अंडाकार, गोलाकार, चक्रिक व फीते के आकार के अंगक होते हैं जो विभिन्न लंबाई (5-10 माइक्रोमीटर) व चौड़ाई (2-4 माइक्रोमीटर) के होते हैं। इनकी संख्या भिन्न हो सकती है जैसे प्रत्येक कोशिका में एक (क्लेमाइडोमोनास-हरितशैवाल) से 20 से 40 प्रति कोशिका पर्णमध्योतक कोशिका हो सकती है।
- सूत्रकणिका की तरह हरित लवक द्विझिल्लिकायुक्त होते हैं। उपरोक्त दो में से इसकी भीतरी लवक झिल्ली अपेक्षाकृत कम पारगम्य होती है। हरितलवक के अंतः झिल्ली से घिरे हुए भीतर के स्थान को पीठिका (स्ट्रोमा) कहते हैं। पीठिका में चपटे, झिल्लीयुक्त थैली जैसी संरचना संगठित होती है जिसे थाइलेकोइड कहते हैं। थाइलेकोइड सिक्कों के चट्टों की भाँति ढेर के रूप में मिलते हैं जिसे ग्रेना (एकवचन-ग्रेनम) या अंतरग्रेना थाइलेकोइड कहते हैं। इसके अलावा कई चपटी झिल्लीनुमा नलिकाएं जो ग्रेना के विभिन्न थाइलेकोइड को जोड़ती है उसे पीठिका पट्टलिकाएं कहते हैं।
- थाइलेकोइड की झिल्ली एक रिक्त स्थान को घेरे होती है। इसे अवकाशिका कहते हैं।
- हरितलवक की पीठिका में बहुत एंजाइम मिलते हैं जो कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक है। इनमें छोटा, द्विलड़ी, वृत्ताकार डीएनए अणु व राइबोसोम मिलते हैं।
- हरित लवक थाइलेकोइड में उपस्थित होते हैं। हरित लवक में पाए जाने वाला राइबोसोम (70s) कोशिकाद्रव्यी राइबोसोम (80s) से छोटा होता है।
6 राइबोसोम
- जार्ज पैलेड (1953) ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा सघन कणिकामय संरचना राइबोसोम को सर्वप्रथम देखा था। ये राइबोन्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन के बने और किसी भी झिल्ली से घिरे नहीं रहते।
- यूकैरियोटिक राइबोसोम 80S व प्रोकैरियोटिक राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं।
- प्रत्येक राइबोसोम में उपइकाइयाँ बड़ी व छोटी उपइकाई होती है। यहाँ पर 's' (स्वेडवर्ग इकाई) अवसादन गुणांक को प्रदर्शित करता है। यह अपरोक्ष रूप में आकार व घनत्व को व्यक्त करता है। दोनों 70S व 80S राइबोसोम दो उपइकाइयों से बना होता है।
7 साइटोपंजर (साइटोस्केलेटन)
- प्रोटीनयुक्त विस्तृत जालिकावत तंतु जो कोशिकाद्रव्य में मिलता है उसे साइटोपंजर कहते हैं। कोशिका में मिलने वाला साइटोपंजर के विभिन्न कार्य जैसे- यांत्रिक सहायता, गति व कोशिका के आकार को बनाए रखने में उपयोगी है।
8 पक्ष्माभ व कशाभिका (सीलिया तथा फ्लैजिला)
- पक्ष्माभिकाएं (एकवचन-पक्ष्माभ) व कशाभिकाएं (एक वचन-कशाभिका) रोम सदृश कोशिका झिल्ली पर मिलने वाली अपवृद्धि है।
- पक्ष्माभ एक छोटी संरचना चप्पू की तरह कार्य करती है, जो कोशिका को या उसके चारों तरफ मिलने वाले द्रव्य की गति में सहायक है।
- कशाभिका अपेक्षाकृत लंबे व कोशिका के गति में सहायक है।
- प्रोकैरियोटिक जीवाणु में पाई जाने वाली कशाभिका संरचनात्मक रूप में यूकैरियोटिक कशाभिका से भिन्न होती है।
- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी अध्ययन से पता चलता है कि पक्ष्माभ व कशाभिका जीवद्रव्यझिल्ली से ढके होते हैं। इनके कोर को अक्षसूत्र कहते हैं, जो कई सूक्ष्म नलिकाओं का बना होता है जो लंबे अक्ष के समानांतर स्थित होते हैं। अक्षसूत्र के केंद्र में एक जोड़ा सूक्ष्म नलिका मिलती है और नौ द्विक अरीय परिधि की ओर व्यवस्थित सूक्ष्मनलिकाएं होती हैं। अक्षसूत्र की सूक्ष्मनलिकाओं की इस व्यवस्था को 9+2 प्रणाली कहते हैं ।
- केंद्रीय नलिका सेतु द्वारा जुड़े हुए एवं केंद्रीय आवरण द्वारा ढके होते हैं, जो परिधीय द्विक के प्रत्येक नलिका को अरीय दंड द्वारा जोड़ते हैं। इस प्रकार नौ अरीय तान (छड़) बनती हैं। परिधीय द्विक सेतु द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। दोनों पक्ष्माभ व कशाभिका तारक केंद्र सदृश संरचना से बाहर निकलते हैं जिसे आधारीकाय कहते हैं।
9 तारककाय व तारककेंद्र (सैन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीयोल)
- तारककाय वह अंगक है जो दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारककेंद्र कहते हैं। यह अक्रिस्टलीय परिकेंद्रीय द्रव्य से घिरा होता है। दोनों तारककेंद्र तारककाय में एक दूसरे के लंबवत् स्थित होते हैं, जिसमें प्रत्येक की संरचना बैलगाड़ी के पहिए जैसी होती है। तारककेंद्र सख्या में नौ समान दूरी पर स्थित परिधीय ट्यूब्यूलिन सूत्रों से बने होते हैं। प्रत्येक परिधीय सूत्रक एक त्रिक होते हैं। पास के त्रिक आपस में जुड़े होते हैं।
- तारककेंद्र का अग्र भीतरी भाग प्रोटीन का बना होता है जिसे धुरी कहते हैं, यह परिधीय त्रिक के नलिका से प्रोटीन से बने अरीय दंड से जुड़े होते हैं। तारककेंद्र पक्ष्माभ व कशाभिका का आधारीकाय बनाता है और तर्कुतंतु जंतु कोशिका विभाजन के उपरांत तर्क उपकरण बनाता है।