हैच एवं स्लैल पथ (C4 Cycle NCERT)
पथ C 4
- Cपथ जैसा कि पहले बताया गया है कि पौधे जो शुष्क उष्णकटिबंधी क्षेत्र में पाए जाते हैं उनमें C4 पथ होता है। इन पौधों में CO₂ को यौगिकीकरण का पहला उत्पाद यद्यपि C4 औक्जेलोएसिटिक अम्ल होता है.
- फिर भी इनके मुख्य जैव संश्लेषण पथ में C3 पथ अथवा केल्विन चक्र ही होता है। तब फिर से C₃ पौधों से किस प्रकार में भिन्न हैं? यह एक प्रश्न है जिसे आप पूछ सकते हैं.
C4 पौधे विशिष्ट हैं:
- इनकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार की शारीरिकी होती है। ये उच्च ताप को सह सकते हैं। ये उच्च प्रकाश तीव्रता के प्रति अनुक्रिया करते हैं। उनमें प्रकाश श्वसन प्रक्रिया नहीं होती और उनमें जैव भार अधिक उत्पन्न होता है।
- C4 पथ पौधों की संवहन बंडल के चारों ओर स्थित बृहद् कोशिकाएं पूलाच्छद (बंडल शीथ) कोशिकाएं कहलाती है और पत्तियाँ जिनमें ऐसी शारीर होती है, उन्हें Krenji शारीर वाली पत्तियाँ कहते हैं। यहाँ, Krenj का अर्थ है छल्ला अथवा घेरा, चूँकि कोशिकाओं की व्यवस्था एक छल्ले के रूप में होती है। संवहन बंडल के आस-पास पूलाच्छद कोशिकाओं की अनेकों परतें होती हैं, इनमें बहुत अधिक संख्या में क्लोरोप्लास्ट होते हैं.
- इसकी मोटी भित्तियाँ गैस से अप्रवेश्य होती हैं और इनमें अंतरकोशीय स्थान नहीं होता। आप C4 पौधों जैसे मक्का अथवा ज्वार की पत्तियों का एक भाग काटो, ताकि कैंज शारीर एवं पर्णमध्योतक देख सकें.
हैच एवं स्लैल पथ
- CO₂ का प्राथमिक ग्राही एक 3 कार्बन अणु फोस्फोइनोल पाइरुवेट (PEP) है और वह पर्णमध्योतक कोशिका में स्थित होता है। इस यौगिकीकरण को पेप कार्बोक्सीलेस अथवा पेप केस (PEP) नामक एंजाइम संपन्न करता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं में रुबिस्को एंजाइम नहीं होता है। C4 अम्ल ओएए पर्णमध्योतक कोशिका में निर्मित होता है।
- इसके बाद ये पर्णमध्योतक कोशिका में अन्य 4-कार्बन वाले अम्ल जैसे मैलिक अम्ल और एस्पार्टिक अम्ल बनते हैं, जोकि पूलाच्छद कोशिका में चले जाते हैं। पूलाच्छद कोशिका में यह C4 अम्ल विघटित हो जाता है जिससे CO₂ तथा एक 3-कार्बन अणु मुक्त होते हैं।
- 3-कार्बन अणु पुनः पर्णमध्योतक में वापस आ जाता है, जहाँ यह पुनः पेप में बदला जाता है और इस तरह से यह चक्र पूरा होता है।
- पूलाच्छद कोशिका से निकली CO2 केल्विन पथ अथवा C3 में प्रवेश करती है केल्विन एक ऐसा पथ जो सभी पौधों में समान रूप से होता है। पूलाच्छद कोशिका रुबिस्को से भरपूर होती है, परंतु पेप केस से रहित होती है। अतः मौलिक पथ केल्विन पथ जिसके परिणामस्वरूप शर्करा बनती है, वह C3 एवं C4 पौधों में सामान्य रूप से होता है।
- केल्विन पथ सभी C3 पौधों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं में पाया जाता है? C4 पौधों में पर्णमध्योतक कोशिकाओं में यह संपन्न नहीं होता है, किंतु पूलाच्छद कोशिकाओं में केवल कारगर होता है।
प्रकाश श्वसन (फोटोरेस्पिरेशन)
- प्रकाश श्वसन समझने के लिए, हमें केल्विन पथ के प्रथम चरण अर्थात् CO₂ स्थिरीकरण के पहले चरण के विषय में कुछ अधिक जानकारी करनी होगी। यह वह अभिक्रिया है जहाँ RuBP कार्बन डाईऑक्साइड से संयोजित कर 3 पीजीए के 2 अणुओं का गठन करता है और एक एंजाइम रिबूलोज विसफोस्फेट कार्बोक्सीलेस ऑक्सीजिनेस (RuBisCO) के द्वारा उत्प्रेरित होता है।
- C3 पौधों में कुछ ०2 रुबिस्को से बंधित होती है अतः CO₂ का यौगिकीकरण कम हो जाता है। यहाँ पर आरयुबीपी 3-PGA के अणुओं में पतिवर्तित होने की बजाय ऑक्सीजन से संयोजित होकर चक्र में एक फास्फोग्लिसरेट अणु तथा फॉस्फोग्लाइकोलेट का एक अणु बनाते हैं जिसे प्रकाश श्वसन कहते हैं।
- प्रकाश श्वसन पथ में शर्करा और एटीपी का संश्लेषण नहीं होता; बल्कि इसमें एटीपी के उपयोग के साथ CO2 भी निकलती है। प्रकाश श्वसन पथ में एटीपी अथवा एनएडीपीएच का संश्लेषण नहीं होता।
- C4 पौधे में प्रकाश श्वसन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि इनमें एक ऐसी प्रणाली होती है जो एंजाइम स्थल पर CO₂ की सार्द्रता बढ़ा देती है। ऐसा तब होता है जब पर्णमध्योतक का C4 अम्ल पूलाच्छद में टूटकर CO₂ को मुक्त करता है, जिसके परिणामस्वरूप CO2 की अंतरकोशिकीय सांद्रता बढ़ जाती है। इससे यह सुनिश्चित हो 2 जाता है कि रुबिस्को कार्बोक्सीलेस के रूप में कार्य करता है, जिससे इसकी ऑक्सीजिनेस के रूप में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक
- प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों के विषय में जानना आवश्यक है। प्रकाश-संश्लेषण की दर पौधों एवं फसली पादपों के उत्पादन जानने में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
- प्रकाश-संश्लेषण कई कारकों से प्रभावित होता है जो बाह्य तथा आंतरिक दोनों ही हो सकते हैं।
- पादप कारकों में संख्या, आकृति, आयु तथा पत्तियों का विन्यास, पर्णमध्योतक कोशिकाएं तथा क्लोराप्लास्ट आंतरिक CO₂ की सांद्रता और क्लोराफिल 2 की मात्रा आदि है।
- पादप अथवा आंतरिक कारक पौधे की वृद्धि तथा आनुवंशिक पूर्वानुकूलता पर निर्भर करते हैं।
- बाह्य कारक हैं सूर्य का प्रकाश, ताप, CO₂ की सांद्रता तथा जल। पादप की प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया में ये सभी कारक एक समय मे साथ-साथ ही प्रभाव डालते हैं। यद्यपि, बहुत सारे कारक परस्पर क्रिया करते हैं तथा साथ-साथ प्रकाश-संश्लेषण अथवा CO₂ के यौगिकीकरण को प्रभावित करते हैं, फिर भी प्रायः इनमें से कोई भी एक कारक इस की दर को प्रभावित अथवा सीमित करने का मुख्य कारण बन जाता है। अतः किसी भी समय पर उपानुकूलतम स्तर पर उपलब्ध कारक द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की दर का निर्धारण होगा।
ब्लैकमैन का (1905) लॉ ऑफ लिमिटिंग फैक्टर्स
- जब अनेक कारक किसी (जैव) रासायनिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं तो ब्लैकमैन का (1905) लॉ ऑफ लिमिटिंग फैक्टर्स प्रभाव में आता है। इसके अनुसारः यदि कोई रासायनिक प्रक्रिया एक से अधिक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तो इसकी दर का निर्धारण उस समीपस्थ कारक द्वारा होगा जो कि न्यूनतम मान (मूल्य) वाला हो। अगर उस कारक की मात्रा बदल दी जाए तो कारक प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करता है।
- उदाहरण के लिए एक हरी पत्ती, अधिकतम अनुकूल प्रकाश तथा CO की उपस्थिति के बावजूद, यदि ताप बहुत कम हो तो प्रकाश संश्लेषण नहीं करेगी। इस पत्ती में प्रकाश-संश्लेषण तभी शुरु होगा, यदि उसे ईष्टतम ताप प्रदान किया जाए।
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक
1 प्रकाश
- जब हम प्रकाश को प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक के रूप में लेते हैं तो हमें प्रकाश की गुणवत्ता, प्रकाश की तीव्रता तथा दीप्तिकाल के बीच अंतर करने की आवश्यकता है। यहाँ कम प्रकाश तीव्रता पर आपतित प्रकाश तथा CO₂ के यौगिकीरण की दर के बीच एक रैखीय संबंध है। उच्च प्रकाश तीव्रता होने पर, इस दर में कोई वृद्धि नहीं होती है, अन्य कारक सीमित हो जाते हैं । .
- इसमें ध्यान देने वाली रोचक बात यह है कि प्रकाश संतृप्ति पूर्ण प्रकाश के 10 प्रतिशत पर होती है। छाया अथवा सघन जंगलों में उगने वाले पौधों को छोड़कर प्रकाश शायद ही प्रकृति में सीमाकारी कारक हो। एक सीमा के बाद आपतित प्रकाश क्लोरोफिल के विघटन का कारण होती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाती है।
2 कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता
- प्रकाशसंश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख सीमाकारी कारक है। वायुमंडल में CO₂ की सांद्रता बहुत ही कम है (0.03 और 0.04 प्रतिशत के बीच )। CO₂ की सांद्रता में 0.05 प्रतिशत तक वृद्धि के कारण CO, की यौगिकीकरण दर में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इससे अधिक की मात्रा लंबे समय तक के लिए क्षतिकारक बन सकता है।
- C3 एवं C4 पौधे CO₂ की सांद्रता में भिन्न अनुक्रिया करते हैं। निम्न प्रकाश स्थितियों में दोनों में से कोई भी समूह उच्च CO₂ सांद्रता के प्रति अनुक्रिया नहीं करते हैं। उच्च प्रकाश तीव्रता में C3 तथा C4 दोनों ही तरह के पादपों में प्रकाश संश्लेषण की बढ़ी दर अधिक हो जाती है। यहाँ पर यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि C, पौधे लगभग 360 µlL पर संतृप्त हो जाते हैं जबकि C3 बढ़ी हुई CO2 सांद्रता पर अनुक्रिया करता है तथा संतृप्तन केवल 450 µlL के बाद ही दिखाती है। अतः उपलब्ध CO का स्तर C पादपों के लिए सीमाकारी है।
- सच यह है कि C पौधे उच्चतर CO, सांद्रता में अनुक्रिया करते हैं और इससे प्रकाश-संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन अधिक होता है और सिद्धांत का उपयोग ग्रीन हाउस फसलों, जैसे टमाटर एवं बेल मिर्च में किया गया है। इन्हें कार्बन-डाइऑक्साइड से भरपूर वातावरण में बढ़ने का अवसर दिया जाता है ताकि उच्च पैदावार प्राप्त हो।
3 ताप
- अप्रकाशी अभिक्रिया एंजाइम पर निर्भर करती है, इसलिए ताप द्वारा नियंत्रित होती है। यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया भी ताप संवेदी होती है, लेकिन उस पर ताप का काफी कम प्रभाव होता है। C पौधे उच्च ताप पर अनुक्रिया करते हैं तथा उनमें प्रकाश-संश्लेषण की दर भी ऊँची होती है, जबकि C पौधे के लिए ईष्टतम ताप कम होता है।
- विभिन्न पौधों के प्रकाश-संश्लेषण लिए इष्टतम ताप उनके अनुकूलित आवास पर निर्भर करता है। उष्णकटिबंधी पौधों के लिए ईष्टतम ताप उच्च होता है। समशीतोष्ण जलवायु में उगने वाले पौधों के लिए एक अपेक्षाकृत कम ताप की आवश्यकता होती है।
4 जल
- यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया में जल एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया अभिकारक है, तथापि, कारक के रूप में जल का प्रभाव पूरे पादप पर पड़ता है, न कि सीधे प्रकाश-संश्लेषण पर। जल तनाव रंध्र को बंद कर देता है अत: CO₂ की उपलब्धता घट जाती है। इसके साथ ही, जल तनाव से पत्तियाँ मुरझा जाती हैं, जिससे पत्ती का क्षेत्रफल कम हो जाता है और इसके साथ ही साथ उपापचयी क्रियाएं भी कम हो जाती हैं।
Biology Fact in Hindi
- पौधे अपने भोजन को प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्वयं तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान वायुमंडल में उपलब्ध कार्बनडाइऑक्साइड पत्तियों के रंध्रों द्वारा ली जाती है और कार्बोहाइड्रेट्स- मुख्यतः ग्लूकोज (शर्करा) एवं स्टार्च बनाने में उपयोग की जाती है।
- प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पौधों के हरे भागों, मुख्यतः पत्तियों में संपन्न होती है। पत्तियों के अंतर्गत पर्णमध्योतक कोशिकाओं में भारी मात्रा में क्लोरोप्लास्ट होता है जोकि CO2 के यौगिकीकरण (फिक्सेशन) के लिए उत्तरदायी होता है।
- क्लोरोप्लास्ट के अंतर्गत, प्रकाश अभिक्रिया के लिए झिल्लिकाएं वह स्थल होती हैं, जबकि केमोसिंथेटिक पथ स्ट्रोमा में स्थित होता है।
- प्रकाश-संश्लेषण में दो चरण होते हैं: प्रकाश अभिक्रिया तथा कार्बन फिक्सिंग रिएक्शन (कार्बन यौगिकीकरण अभिक्रिया)। प्रकाश अभिक्रिया में प्रकाश ऊर्जा एंटेना में मौजूद वर्णकों द्वारा अवशोषित किए जाते हैं तथा अभिक्रिया केंद्र में मौजूद क्लोरोफिल ए के अणुओं को भेज दिए जाते हैं।
- यहाँ पर दो फोटोसिस्टम (प्रकाश प्रणाली) पीएस 1 तथा पीएस II होते हैं। पीएस 1 के अभिक्रिया केंद्र में क्लोरोफिल ए पी 700 के अणु जो प्रकाश तरंगदैर्ध्य 700 एनएम को अवशोषित करते हैं, जबकि पीएस II में एक पी 680 अभिक्रिया केंद्र होता है जो लाल प्रकाश को 680 एनएम पर अवशोषित करता है।
- प्रकाश अवशोषण के बाद इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होते हैं और PS II तथा PS I से स्थानांतरित होते हुए अंत में एनएडीपी (NADP) में पहुँच एनएडीपीएच (NADPH) की रचना करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान एक प्रोटोन प्रवणता थाइलेकोइड की झिल्लिका के आर-पार पैदा की जाती है।
- एटीपी एंजाइम के हिस्से F से प्रोटोन की गति के कारण प्रवणता भंग हो जाती है तथा एटीपी के संश्लेषण हेतु पर्याप्त ऊर्जा मुक्त की जाती है। पानी के अणु का विघटन PS II के साथ जुड़ा होता है, परिणामत: O₂, और प्रोटोन की 2 रिहाई होती है और PS II में इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण होता है।
- कार्बन यौगिकीकरण में, एंजाइम रुबिस्को द्वारा CO₂ एक 5 कार्बन यौगिक RuBP से जोड़ा जाता है तथा 3 कार्बन पीजीए के 2 अणु में बदलता है। इसके बाद केल्विन चक्र द्वारा यह शर्करा में परिवर्तित होता है और RuBP पुनरुद्भवित होता है। इस प्रक्रिया के दौरान प्रकाश अभिक्रिया द्वारा संश्लेषित एटीपी एवं एनएडीपी एच इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही C, पौधों में रुबिस्को एक निरर्थक ऑक्सीजिनेशन प्रतिक्रियाः प्रकाश श्वसन को उत्प्रेरित करता है।
- कुछ उष्णकटिबंधीय पौधे विशेष प्रकार का प्रकाश संश्लेषण करते हैं जिसे C कहते हैं। इन पौधों के पर्णमध्योतक में संपन्न होने वाले CO₂ यौगिकीकरण के उत्पाद एक 4 कार्बन यौगिक हैं। पूलाच्छद कोशिका में केल्विन पथ चलाया जाता है, जिससे कार्बोहाइड्रेटस का संश्लेषण होता है।