दोहरा निषेचन (द्वि-निषेचन)
दोहरा निषेचन (द्वि-निषेचन)
- एक सहायकोशिका में प्रवेश करने के पश्चात् पराग नलिका द्वारा सहायकोशिका के जीव द्रव्य में दो नर युग्मक अवमुक्त किए जाते हैं। इनमें से एक नर युग्मक अंड कोशिका की ओर गति करता है और केंद्रक के साथ संगलित होता है, जिससे युग्मक संलयन पूर्ण होता है। जिसके परिणाम में एक द्विगुणित कोशिका युग्मनज (जाइगोट) की रचना होती है।
- दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय न्युक्ली (केंद्रिकी) की ओर गति करता है और उनसे संगलित होकर त्रिगुणित (प्राइमरी इंडोस्पर्म न्युकिलयस (प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक) बनाता है।
- जैसा कि इसके अन्तर्गत तीन अगुणितक न्युक्ली (केंद्रिकी) सम्मिलित होते हैं। अतः इसे त्रिसंलयन कहते हैं । चूँकि एक भ्रूण पुटी (भ्रूणकोश) में दो प्रकार के संलयन (संगलन), युग्मकसंलयन तथा त्रिसंलयन स्थान लेते हैं अतः इस परिघटना को दोहरा निषेचन कहा जाता है। जो कि पुष्पी पादपों के लिए एक अनूठी घटना है।
- त्रिसंलयन के पश्चात् केंद्रीय कोशिका प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका बन जाती है तथा भ्रूणपोष के रूप में विकसित होने लगती है जबकि युग्मनज एक भ्रूण के रूप में विकसित होता है।
निषेचन – पश्च-संरचनाएँ एवं घटनाएँ
- ऊपर वर्णित किए गए दोहरे निषेचन के अनुपालन या अनुहरण में भ्रूण पोष एवं भ्रूण के विकास की अगली घटनाक्रम में; बीजांड के परिपक्व होकर बीज में बदलने तथा अंडाशय को फल के रूप में विकसित होने की सभी घटनाओं को सामूहिक रूप में निषेचन-पश्च घटना के नाम से जाना जाता है।
1 भ्रूणपोष
भ्रूणपोष का विकास भ्रूण विकास के रूप में बढ़ता है।
- प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका बार-बार विभाजित होती है तथा एक त्रिगुणित भ्रूणपोष ऊतक की रचना करते हैं। इन ऊतकों की कोशिकाएँ संरक्षित खाद्य सामग्री से पूरित होती हैं और विकासशील भ्रूण की पोषकता के लिए उपयोग किए जाते हैं। सर्वाधिक सामान्य प्रकार के प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक नामक भ्रूणपोष विकास उत्तरोत्तर केंद्रकी (न्युकिलयर) विभाजन से गुजर कर मुक्त न्युक्ली (केंद्रकी) के रूप में पैदा होता है। भ्रूणपोष के विकास की इस अवस्था को फ्रीन्युकिलयर इंडोस्पर्म अर्थात् मुक्त केंद्रकी भ्रूणपोष कहते हैं। इसके सापेक्ष ही कोशिका भित्ति रचना स्थान लेती है और भ्रूणपोष कोशकीय बन जाता है।
- कोशिकीकरण से पहले मुक्त न्युक्लीआइयों की संख्याओं में व्यापक भिन्नता होती है। एक कच्चे नारियल का पानी, जिससे आप परिचित हैं, और कुछ नहीं भी, बल्कि यह मुक्त केंद्रकी भ्रूणपोष (जो हजारों न्युक्ली से बना) है और इसके आस-पास का सफेद गूदा (गिरी) कोशकीय भ्रूणपोष होता है।
- बीज के परिपक्व होने से पहले भ्रूणपोष पूरी तरह से विकासशील भ्रूण (जैसे मटर, मूँगफली, सेम आदि) द्वारा उपभोग कर लिया जाता है या फिर परिपक्व बीज में विद्यमान रहता है (जैसे अरंडी और नारियल) और इसे बीज अंकुरण के समय इस्तेमाल किया जाता है।
2 भ्रूण
- भ्रूण भ्रूणकोश या पुटी के बीजांडद्वारी सिरे पर विकसित होता है; जहाँ पर युग्मनज स्थित होता है। अधिकतर युग्मनज तब विभाजित होते हैं जब कुछ निश्चित सीमा तक भ्रूणपोष विकसित हो जाता है। यह एक प्रकार का अनुकूलन है ताकि विकासशील भ्रूण को सुनिश्चित पोषण प्राप्त हो सके। यद्यपि बीज में व्यापक भिन्नता होती है। भ्रूण विकास (भ्रूणोद्भव) की प्रारंभिक अवस्था (चरण) एक बीजपत्री तथा द्विबीजपत्री दोनों ही में समान होती है । युग्मनज प्राक्भ्रूण के रूप में वृद्धि करता है और इसके सापेक्ष ही गोलाकार, हृदयाकार तथा परिपक्व भ्रूण में वृद्धि करता है।
- एक प्ररूपी द्विबीजपत्री भ्रूण में एक भ्रूणीय अक्ष (धुरी) तथा दो बीजपत्र समाहित होते हैं। बीजपत्र के स्तर से ऊपर भ्रूणीय अक्ष की प्रोटीन (एपीकाटील) बीजपत्रोपरिक होती है जो प्रांकुर या स्तंभ सिरे पर प्रायः समाप्त होती है। बीजपत्राधार में बीजपत्रों के स्तर से नीचे बेलनाकार प्रोटीन, जो कि मूलांत सिरा या मूलज के शीर्षांत पर समाप्त होती है। यह मूलशीर्ष एक ढक्कन द्वारा आवृत होती है, जिसे मूल गोप कहते हैं।
- एकबीजपत्रीय-भ्रूण केवल एक बीजपत्र होता है। घास परिवार में बीजपत्र को स्कुटेलम (प्रशल्क) कहते हैं। जो भ्रूणीय अक्ष के एक तरफ (पार्श्व की ओर) स्थित होता है। इसके निचले सिरे पर भ्रूणीय अक्ष में एक गोलाकार और मूल आवरण एक बिना विभेदित पर्त से आवृत्त होता है। जिसे (कोलियोराइजा) मूलाकुंर चोल कहते हैं।
- स्कुटेलम के जुड़ाव के स्तर से ऊपर, भ्रूणीय अक्ष के भाग को बीजपत्रोपरिक कहते हैं। बीजपत्रोपरिक में प्ररोह शीर्ष तथा कुछ आदि कालिक (आद्य) पर्ण होते हैं, जो एक खोखला-पणीर्य संरचना को घेरते हैं, जिसे प्रांकुरचोल कहते हैं।
3 बीज
- आवृतबीजियों में, लैंगिक जनन का अंतिम परिणाम बीज होता है। इसको प्रायः एक निषेचित बीजांड के रूप में वर्णित किया जाता है। बीज फलों के अंदर पैदा होते हैं। एक बीज में विशिष्ट रूप से बीज आवरण, बीजपत्र तथा एक भ्रूण अक्ष (अँखुआ) समाहित होता है। भ्रूण का बीजपत्र एक सरल संरचना होती है। प्रायः आरक्षित आहार भंडारण के कारण फूली हुई एवं स्थूल होती है (जैसा कि लेग्युमस में)। परिपक्व बीज गैर-एल्बुमिनस अथवा एल्बुमिनस रहित हो सकता है। गैर-एल्बुमिनस बीज में अवशिष्ट भ्रूणपोष नहीं होता है; क्योंकि भ्रूण विकास के दौरान यह पूर्णतः उपभुक्त कर लिया जाता है (जैसे मटर, मूँगफली)। एल्बुमिनस बीजों में भ्रूणपोष का कुछ भाग शेष रह जाता है क्योंकि भ्रूण विकास के दौरान इसका पूर्णतः उपभोग नहीं हो पाता है (जैसे कि गेहूँ, मक्का, बाजरा, अरंड आदि)। कभी-कभार कुछ बीजों में जैसे कि काली मिर्च तथा चुकंदर में बीजांडकाय (न्यूसैलस) भी शेष रह जाता है। अवशिष्ट उपस्थित बीजांडकाय परिभ्रूणपोष होता है।
- बीजांड (अंडाशय) का अध्यावरण बीज के ऊपर सख्त संरक्षात्मक आवरण बन जाता है । बीज के आवरण में बीजांडद्वार एक छोटे छिद्र के रूप में रह जाता है। बीज अंकुरण के समय यह ऑक्सीजन एवं जल के प्रवेश को सुगम बनाता है।
- जैसे-जैसे बीज परिपक्व होता है, उसके अंदर जल की मात्रा घटने लगती है तथा बीज अपेक्षाकृत शुष्क होता जाता है। फलस्वरूप सामान्य चयापचयी क्रिया धीमी पड़ने लगती है। भ्रूण निष्क्रियता की दशा में प्रवेश कर जाता है, जिसे प्रसुप्ति कहते हैं या यदि अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध (पर्याप्त नमी, आर्द्रता, ऑक्सीजन तथा उपयुक्त तापमान) होती है तो वे अंकुरित हो जाते हैं।
- जैसे-जैसे बीजांड परिपक्व होकर बीज बनते हैं अंडाशय एक फल के रूप में विकसित हो जाता है अर्थात् बीजांड का बीज के रूप में तथा अंडाशय का फल के रूप में रूपांतरण साथ-साथ चलता है। अंडाशय की दीवार, फल की दीवार (छिलके) के रूप में विकसित होती है जिसे फलभित्ति कहते हैं। फल अमरूद, आम, संतरे आदि की भाँति गूदेदार हो सकते हैं अथवा मूँगफली, सरसों आदि की भाँति शुष्क भी हो सकते हैं। बहुत सारे फलों ने अपने बीजों के परिक्षेपण हेतु विविध क्रिया विधियाँ विकसित की हैं।
- अधिकतर पादपों में, जब तक अंडाशय से फल विकसित होता है, उसके अन्य पुष्पीय अंश अपह्वासित एवं झड़ जाते हैं। हालाँकि, कुछेक प्रजातियों में; जैसे कि सेब, स्ट्राबेरी (रसभरी), अखरोट आदि में फल की रचना में पुष्पासन भी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। इस प्रकार के फलों को (मिथ्या) आभासी फल कहते हैं । अधिकतर फल केवल अंडाशय से विकसित होते हैं और उन्हें यथार्थ या वास्तविक फल कहते हैं।
- यद्यपि अधिकतर प्रजातियों में फल निषेचन का परिणाम होते हैं; परंतु कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी हैं जिनमें बिना निषेचन के फल विकसित होते हैं। ऐसे फलों को अनिषेकजनितफल कहते हैं। इसका एक उदाहरण केला है। अनिषेक फलन को वृद्धि हार्मोन्स के प्रयोग से प्रेरित किया जा सकता है और इस प्रकार के फल बीज रहित होते हैं। बीज आवृतबीजियों को अनेक लाभ प्रस्तावित करते हैं। पहला, जबकि प्रजनन प्रक्रिया जैसे कि परागण एवं निषेचन जल आदि से स्वतंत्र हैं, बीज की रचना काफी निर्भरता पूर्ण है। इसके साथ ही बीज नए पर्यावासों में प्रसारण हेतु बेहतर अनुकूलित रणनीतियों से युक्त होते हैं तथा प्रजाति को अन्य क्षेत्रों में बसने में मदद करते हैं। जैसा कि इनमें पर्याप्त आरक्षित आहार भंडार होता है, अल्पवयस्क नवोद्भिद तब तक पोषण देते हैं, जब तक कि वह स्वयं ही प्रकाश संश्लेषण न करने लगे। युवा भ्रूण को कठोर बीज-आवरण संरक्षण प्रदान करता है। लैंगिक प्रजनन का उत्पाद होने की वजह से, ये नवीन जेनेटिक (वंशीय) सम्पाक् को पैदा करते हैं जो विविधता का रूप लेते हैं।
- बीज हमारी कृषि का आधार है। बीज के भंडारण हेतु परिपक्व बीज का निर्जलीकरण एवं प्रसुप्ति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है; जिसे पूरे वर्ष भर खाद्यान्न के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है तथा अगले मौसम के लिए फसल के रूप में उगाया भी जा सकता है।
बीज के परिक्षेपण (छितराने) के बाद, वह कितने समय तक जीवित रह सकता है?
- यह अवधि पुनः व्यापक रूप से भिन्न होती है। कुछ प्रजातियों में बीज अपनी जीवन क्षमता कुछ महीनों में ही खो देते हैं।
- बहुसंख्य प्रजातियों के बीज कई वर्षों तक जीवनक्षम रहते हैं। कुछ बीज तो सैकड़ों वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।
- यहाँ पर विश्व के प्राचीन जीवन सक्षम बीजों के अनेक रिकार्ड उपलब्ध हैं। एक प्राचीन बीज ल्यूपाइन ल्युपिनस आर्कटीकस है, जिसे आर्कटिक टुंड्रा से खनित किया गया था। एक अनुमानित रिकार्ड 10,000 वर्ष की प्रसुप्ति के बाद बीज अंकुरित एवं पुष्पित हुआ था।
- हाल ही का एक रिकार्ड 2000 वर्ष पुराने खजूर के जीवन क्षम बीज-फोयेनिक्स डैक्टीलीफेरा का है जिसे मृत सागर के पास किंग हैराल्ड के महल की पुरातात्विक खुदाई के दौरान खोज पाया गया था।
असंगजनन एवं बहुभ्रूणता
- यद्यपि, सामान्य तौर पर बीज निषेचन के परिणाम हैं; कुछेक पुष्पी पादपों जैसे कि एस्ट्रेर्सिया तथा घासों ने बिना निषेचन के ही बीज पैदा करने की प्रक्रिया विकसित कर ली है; जिसे असंगजनन कहते हैं।
- इस प्रकार से, असंगजनन अलिंगीय प्रजनन है जो लैंगिक प्रजनन का अनुहारक है। असंगजननीय बीजों के विकास के सैकड़ों तरीके हैं। कुछ प्रजातियों में द्विगुणित अंडकोशिका का निर्माण बिना अर्धसूत्री विभाजन के होता है, जो बिना निषेचन के ही भ्रूण में विकसित हो जाता है।
- प्रायः कई अवसरों पर, जैसा कि बहुत सारे नींबू वंश (सिट्रस) तथा आम की किस्मों में भ्रूणकोश (पुटी) के आस पास की कुछ बीजांड कायिक कोशिकाएँ विभाजित होने लगती हैं और भ्रूणकोश में प्रोद्वधी (प्रोटूड) होती हैं तथा भ्रूण के रूप में विकसित हो जाती हैं। इस प्रकार की प्रजातियों में प्रत्येक बीजांड में अनेक भ्रूण होते हैं। एक बीज में एक से अधिक भ्रूण की उपस्थिति को बहुभ्रूणता कहते हैं।
- बहुत से हमारे खाद्य एवं शाक फसलों की संकर किस्मों को उगाया गया है। संकर किस्मों की खेती ने उत्पादकता को विस्मयकारी ढंग से बढ़ा दिया है। संकर बीजों की एक समस्या यह है कि उन्हें हर साल उगाया (पैदा किया) जाना चाहिए। यदि संकर किस्म का संगृहीत बीज को बुआई करके प्राप्त किया गया है तो उसकी पादप संतति पृथक्कृत होगी और वह संकर बीज की विशिष्टता को यथावत नहीं रख पाएगा। यदि यह संकर (बीज) असंगजनन से तैयार की जाती है तो संकर संतति में कोई पृथक्करण की विशिष्टताएँ नहीं होंगी।
- इसके बाद किसान प्रतिवर्ष फसल-दर-फसल संकर बीजों का उपयोग जारी रख सकते हैं और उसे प्रतिवर्ष संकर बीजों को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। संकर बीज उद्योग में असंगजन की महत्ता के कारण दुनिया भर में, विभिन्न प्रयोगशालाओं में असंगजनन की आनुवंशिकता को समझने के लिए शोध और संकर किस्मों में असंगजनित जीन्स को स्थानांतरित करने पर अध्ययन चल रहे हैं।
पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन महत्वपूर्ण तथ्य
- पुष्प आवृत बीजियों में लैंगिक जनन के आधार हैं।
- पुष्पों में, पुंकेसरों के पुमंग-संगति नर जनन अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि स्त्रीकेसर के जायांग-संगति मादा जनन अंगों का प्रतिनधित्व करते हैं।
- एक प्ररूपी परागकोश द्विपालिक, द्विकोष्ठी तथा चतुष्क बीजाणुधानी होता है।
- परागकण लघुबीजाणुधानी के अंदर विकसित होते हैं।
- चार भित्ति पर्ते अंतस्त्वचा, अंतस्थीसियम, मध्य पर्त (सतह) और टेपीटम लघुबीजाणुधानी को आवृत किए होती हैं।
- बीजाणुजनऊतक की कोशिकाएँ लघुबीजाणुधानी के केन्द्र में अवस्थित अर्धसूत्री विभाजन से गुजरते हुए लघुबीजाणुओं की रचना करती हैं। प्रत्येक लघुबीजाणु व्यष्टि रूप में परागकण के रूप में विकसित होता है।
- परागकण नर युग्मकजनन पीढ़ी (जनन) का प्रतिनिधित्व करते हैं। परागकणों में दो सतही भित्ति होती है जो बाहर बाह्यचोल तथा अंदर की ओर अंतश्चोल कहलाती है। बाह्यचोल स्पोरोलेनिन का बना होता है और जनन छिद्र युक्त होता है।
- परागकण में अवनमन के समय दो कोशिकाएँ (कायिककोशिका तथा जननकोशिका) या तीन कोशिकाएँ (एक कायिककोशिका तथा दो नर युग्मक) हो सकती हैं।
- स्त्रीकेसर में तीन अंग होते हैं वर्तिकाग्र, वर्तिका तथा अंडाशय।
- अंडाशय में बीजांड उपस्थित होते हैं। बीजांड में एक डंठल होता है, जिसे कीपिका (फंकल) कहते हैं तथा दो संरक्षात्मक अध्यावरण तथा एक द्वार जिसे बीजांडद्वार कहते हैं, होता है।
- बीजांडकाय में स्थित केंद्रीय ऊतक है; जहाँ प्रप्रसूतक विभाजित होता है। प्रप्रसूतक कोशिका; गुरूबीजाणु मातृ कोशिका अर्धसूत्री विभाजन से विभाजित होते हुए एक गुरूबीजाणु भ्रूण कोश (पुटी) (एक स्त्री युग्मकोद्भिद) की रचना करते हैं।
- एक परिपक्व भ्रूणकोश 7-कोशकीय एवं 8-न्युकिलिएट होते हैं।
- बीजांड द्वारी शीर्ष पर अंड उपकरण (एप्रेटस) में दो सहायकोशिकाएँ तथा एक अंड कोशिका समाहित होती है।
- निभाग छोर पर तीन प्रतिव्यासांत होते हैं। केंद्र में दो ध्रुवीय न्युकली (केंद्रिकी) के साथ एक वृहद् केंद्रीय कोशिका होती है।
- परागण एक प्रक्रम है, जिसमें परागकण परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होते हैं। परागण एजेंट (कारक) या तो आजीवीय (हवा एवं पानी) होते हैं या फिर जीवीय (प्राणि वर्ग) होते हैं।
- पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण के अंतर्गत वे सभी घटनाएँ शामिल होती है जो वर्तिकाग्र पर परागकण के अवनमन (झड़ने) से शुरु होकर भ्रूणकोश की परागनली में (जब पराग सुयोग्य होते हैं) प्रवेश या पराग के संदमन (जब पराग अयोग्य होता है) तक की क्रिया होती है। इसके आगे सुयोग्य परागण, वर्तिकाग्र पर परागकण का अंकुरित होना, और परिणाम स्वरूप पराग नलिका का वर्तिका के माध्यम से वृद्धि करना, बीजांड में प्रवेश और अंत में एक सहाय कोशिका में दो नर युग्मकों का विसर्जन होता है।
- आवृतबीजी दोहरा निषेचन प्रदर्शित करते हैं क्योंकि प्रत्येक भ्रूणकोश में दो संगलन या संलयन (फ्युजन) मुख्यतः युग्मकसंलयन तथा त्रिसंलयन होते हैं।
- इन संलयनों (संगलनों) का परिणाम द्विगुणित युग्मनज तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका) का परिणाम होता है। यह युग्मनज, भ्रूण तथा प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका, भ्रूणपोष ऊतक गठित करते हैं। भ्रूणपोष का निर्माण सदैव भ्रूण के विकास को आगे बढ़ाता है।
- विकासशील भ्रूण कई विभिन्न चरणों से गुजरता है, जैसे कि प्राक्भ्रूण, गोलाकार तथा हृदयाकार आकृति चरण और इसके बाद परिपक्वता।
- परिपक्व द्विबीजपत्री भ्रूण के अंदर दो बीजपत्र तथा प्रांकुरचोल सहित एक भ्रूणीय अक्ष तथा एक बीजपत्राधार होता है।
- एक बीजपत्री के भ्रूण में एक अकेला बीजपत्र होता है।
- निषेचन के बाद, अंडाशय फल के रूप में तथा बीजांड बीज के रूप में विकसित होता है।
- असंगजनन नामक एक परिघटना कुछ आवृतबीजियों में, विशेष रूप से घास कुल में पाई गई है। यह बिना निषेचन के बीज रचना का परिणाम है।
- बागवानी एवं कृषि विज्ञान में असंगजनन के बहुत सारे लाभ हैं।
- कुछ आवृतबीजी अपने बीज में एक से अधिक भ्रूण उत्पन्न करते हैं। इस परिघटना या दृश्य प्रवंच को बहुभ्रूणता कहा जाता है।