पुरुष स्त्री जनन तंत्र (Human reproductive system)
- मानव लैंगिक रूप से जनन करने वाला और सजीवप्रजक या जरायुज प्राणी है।
- मानवों में जनन घटना के अंतर्गत युग्मकों की रचना (युग्मकजनन) अर्थात् पुरुष में शुक्राणुओं तथा स्त्री में अंडाणु का बनना, स्त्री जनन पथ में शुक्राणुओं का स्थानांतरण (वीर्यसेचन) और पुरुष तथा स्त्री के युग्मकों का संलयन (निषेचन) जिसके कारण युग्मनज (जाइगोट) का निर्माण होता है, शामिल हैं।
- इसके बाद कोरकपुटी (ब्लास्टोसिस्ट) की रचना तथा परिवर्धन और इसका गर्भाशय की दीवार से चिपक जाना (अंतर्रोपण), भ्रूणीय परिवर्धन (गर्भावधि) और शिशु के जन्म (प्रसव) की क्रियाएँ घटित होती हैं।
- जनन घटनाएँ यौवनारंभ के पश्चात् सम्पन्न होती हैं। पुरुष और स्त्री के बीच महत्त्वपूर्ण रूप से जनन घटनाएँ होती हैं; उदाहरण के लिए एक वृद्ध पुरुष में भी शुक्राणु बनना जारी रहता है, लेकिन स्त्रियों में अंडाणु की रचना 50 वर्ष की आयु के लगभग समाप्त हो जाती है।
पुरुष जनन तंत्र (THE MALE REPRODUCTIVE SYSTEM)
- पुरुष जनन तंत्र शरीर के श्रोणि क्षेत्र (पेल्विस रीजन) में अवस्थित होता है । इसके अंतर्गत एक जोड़ा वृषण, सहायक वृषण, सहायक नलिकाओं के साथ-साथ एक जोड़ी ग्रंथियाँ तथा बाह्य जननेंद्रिय शामिल होते हैं।
- शरीर में वृषण उदर गुहा के बाहर एक थैली/धानी में स्थित होते हैं जिसे वृषणकोष (स्क्रोटम) कहते हैं। वृषणकोष वृषणों के तापमान को (शरीर के तापमान से 2-2.5 डिग्री सेंटीग्रेड) कम रखने में सहायक होता है जो शुक्राणुजनन के लिए आवश्यक है।
- वयस्कों में प्रत्येक वृषण अंडाकार होता है, जिसकी लम्बाई लगभग 4 से 5 सेमी. और चौड़ाई लगभग 2 से 3 सेमी. होती है। वृषण सघन आवरण से ढका रहता है। प्रत्येक वृषण में लगभग 250 कक्ष होते हैं जिन्हें वृषण पालिका (टेस्टिकुलर लोब्युल्स) कहते हैं .
- प्रत्येक वृषण पालिका के अंदर एक से लेकर तीन अति कुंडलित शुक्रजनक नलिकाएँ (सेमिनिफेरस ट्यूबुल्स) होती हैं जिनमें शुक्राणु पैदा किए जाते हैं। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका का भीतरी भाग दो प्रकार की कोशिकाओं से स्तरित होती हैं, जिन्हें नर जर्म कोशिकाएँ (शुक्राणुजन / स्पर्मेटोगोनिया) और सर्टोली कोशिकाएँ कहते हैं .
- नर जर्म कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन (या अर्धसूत्रण) के फलस्वरूप शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं जबकि सर्टोली कोशिकाएँ जर्म कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं।
- शुक्रजनक नलिकाओं के बाहरी क्षेत्र को अंतराली अवकाश (इंटरस्टीशियल स्पेस) कहा जाता है। इसमें छोटी-छोटी रुधिर वाहिकाएँ और अंतराली कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) या लीडिग कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) होती हैं । लीडिग कोशिकाएँ पुंजन (एंड्रोजन) नामक वृषण हार्मोन संश्लेषित व स्रवित करती हैं। यहाँ पर कुछ अन्य कोशिकाएँ भी होती हैं जो प्रतिरक्षात्मक कार्य करने में सक्षम होती हैं।
- पुरुष लिंग सहायक नलिकाओं के अंतर्गत वृषण जालिकाएँ (रेटे टेस्टिस), शुक्र वाहिकाएँ (वास इफेरेंशिया), अधिवृषण (ऐपिडिडिमिस) तथा शुक्रवाहक (वास डेफेरेंस) होते हैं। वृषण की शुक्रजनक नलिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं। यह शुक्रवाहिका वृषण से चलकर अधिवृषण में खुलती हैं, जो प्रत्येक वृषण के पश्च सतह पर स्थित होती है। यह अधिवृषण शुक्रवाहक की ओर बढ़ते हुए उदर की ओर ऊपर जाती हैं और मूत्राशय के ऊपर की ओर लूप बनाती है। इसमें शुक्राशय से एक वाहिनी आती है और मूत्र मार्ग में स्खलनीय वाहिनी के रूप में खुलती है.
- ये नलिकाएँ वृषण से प्राप्त शुक्राणुओं का भंडारण तथा मूत्र मार्ग से इनका बाहर स्थानांतरण करती हैं। मूत्रमार्ग मूत्राशय से निकल कर पुरुष के शिश्न (पेनिस) के माध्यम से गुजरता हुआ बाहर की ओर एक छिद्र के रूप में खुलता है जिसे मूत्राशय मुख (यूरेथ्रल मीऐटस) कहते हैं।
- शिश्न, पुरुष की बाहरी जननेन्द्रिय है । यह विशेष प्रकार के ऊतकों का बना होता है जो शिश्न के उद्घर्षण या उठान (इरेक्शन) में सहायता प्रदान कर वीर्यसेचन (इंसेमिनेशन) को सुगम बनाता है। शिश्न का अंतिम वर्धित भाग शिश्न मुंड (ग्लांस पेनिस) कहलाता है जो एक ढीली त्वचा से ढका होता है, जिसे अग्रच्छद (फोरस्किन) कहते हैं.
- पुरुष लिंग की सहायक ग्रंथियों के अंतर्गत एक जोड़ा शुक्राशय, एक पुरस्थ (प्रोस्टेट) ग्रंथि तथा एक जोड़ा बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियाँ शामिल होती हैं। इन ग्रंथियों का स्राव शुक्रीय (सेमिनल) प्लाज्मा का निर्माण करता है जो फ्रुक्टोज (फल शर्करा), कैल्सियम तथा कुछ प्रकिण्व (एंजाइम्स) से भरपूर होता है। बल्वोयूरेथ्रल ग्रंथियों का स्राव मैथुन के दौरान शिश्न में स्नेहन (लूब्रिकेशन) प्रदान करने में भी सहायक होता है।
स्त्री जनन तंत्र THE FEMALE REPRODUCTIVE SYSTEM
- स्त्री जनन तंत्र के अन्तर्गत एक जोड़ा अंडाशय डाशय (ओवरी) के साथ-साथ एक जोड़ा अंडवाहिनी (ओविडक्ट), एक गर्भाशय (यूटेरस), एक गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) तथा एक योनि (वेजाइना) और बाह्य जननेन्द्रिय (एक्सटर्नल जेनिटेलिया) शामिल होते हैं जो श्रोणि क्षेत्र में होते हैं। जनन तंत्र के ये सभी अंग एक जोड़ा स्तन ग्रंथियों (मैमरी ग्लैंड्स) के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक रूप में संयोजित होते हैं; जिसके फलस्वरूप अंडोत्सर्ग, (ओव्यूलेशन), निषेचन (फर्टिलाइजेशन), सगर्भता (प्रेगनेन्सी), शिशुजन्म तथा शिशु की देखभाल की प्रक्रियाओं में सहायता मिलती है।
- अंडाशय स्त्री के प्राथमिक लैंगिक अंग हैं जो स्त्री युग्मक (अंडाणु ओवम) और कई स्टेरॉयड हॉर्मोन (अंडाशयी हार्मोन) उत्पन्न करते हैं। उदर के निचले भाग के दोनों ओर एक-एक अंडाशय स्थित होता है ।
- प्रत्येक अंडाशय की लम्बाई 2 से 4 से.मी. के लगभग होती है और यह श्रोणि भित्ति तथा गर्भाशय से स्नायुओं (लिगामेंट्स) द्वारा जुड़ा होता है। प्रत्येक अंडाशय एक पतली उपकला (एपिथिलियम) से ढका होता है जो कि अंडाशय पीठिका (ओवेरियन स्ट्रोमा) से जुड़ा होता है। यह पीठिका दो क्षेत्रों-एक परिधीय वल्कुट (पेरिफेरल कॉर्टेक्स) और एक आंतरिक मध्यांश (मेडुला) में विभक्त होता है।
- अंडवाहिनियाँ (डिम्बवाहिनी नलिका/फेलोपियन नलिका), गर्भाशय तथा योनि मिलकर स्त्री सहायक नलिकाएँ बनाती हैं। प्रत्येक डिम्बवाहिनी नली लगभग 10-12 से.मी. लम्बी होती है, जो प्रत्येक अंडाशय की परिधि से चलकर गर्भाशय तक जाती है ।
- अंडाशय के ठीक पास डिंबवाहिनी का हिस्सा कीप के आकार का होता है, जिसे कीपक (इंफन्डीबुलम) कहा जाता है। इस कीपक के किनारे अंगुलि सदृश्य प्रक्षेप (प्रोजेक्शन) होते हैं, जिसे झालर (फिंब्री) कहते हैं।
- अंडोत्सर्ग के दौरान अंडाशय से उत्सर्जित अंडाणु को संग्रह करने में ये झालर सहायक होते हैं। कीपक आगे चलकर अंडवाहिनी के एक चौड़े भाग में खुलता है, जिसे तुंबिका (एंपुला) कहते हैं। अंडवाहिनी का अंतिम भाग संकीर्ण पथ (इस्थमस) में एक संकरी अवकाशिका (ल्यूमेन) होती है, जो गर्भाशय को जोड़ती है।
- गर्भाशय केवल एक होता है और इसे बच्चादानी (वुम्ब) भी कहते हैं। गर्भाशय का आकार उल्टी रखी गई नाशपाती जैसा होता है। यह श्रोणि भित्ति से स्नायुओं द्वारा जुड़ा होता है। गर्भाशय एक पतली ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है। ग्रीवा की गुहा को ग्रीवा नाल (सर्वाइकल कैनाल) कहते हैं , जो योनि के साथ मिलकर जन्म-नाल (बर्थ कैनाल) की रचना करती है।
- गर्भाशय की भित्ति, ऊतकों की तीन परत वाली होती है। बाहरी पतली झिल्लीमय स्तर को परिगर्भाशय (पेरिमैट्रियम), मध्य मोटी चिकनी पेशीय स्तर को गर्भाशय पेशी स्तर (मायोमैट्रियम) और आंतरिक ग्रंथिल स्तर को गर्भाशय अंतःस्तर (एंडोमैट्रियम) कहते हैं, जो गर्भाशय गुहा को स्तरित करती हैं।
- आर्तव चक्र (मेन्सटूअल साइकिल) के दौरान गर्भाशय के अंतः स्तर में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जबकि गर्भाशय पेशीस्तर में प्रसव के समय काफी तेज संकुचन होते हैं।
- स्त्री के बाह्य जननेंद्रिय के अन्तर्गत जघन शैल (मौंस प्यूबिस), वृहद भगोष्ठ (लेबिया मैजोरा), लघु भगोष्ठ (लेबिया माइनोरा), योनिच्छद (हाइमेन) और भगशेफ (क्लाइटोरिस) आदि होते हैं ।
- जघन शैल वसामय ऊतकों से बनी एक गद्दी सी होती है जो त्वचा और जघन-बालों से ढँकी होती है। वृहद भगोष्ठ ऊतकों का माँसल वलन (फोल्ड) है, जो जघन शैल से नीचे तक फैले होते हैं और योनिद्वार को घेरे रहते हैं। लघु भगोष्ठ ऊतकों का एक जोड़ा वलन होता है और यह वृहद भगोष्ठ के नीचे स्थित होता है।
- योनि का द्वार प्रायः एक पतली झिल्ली, जिसे योनिच्छद कहते हैं, से आंशिक रूप से ढका होता है। भगशेफ एक छोटी सी अंगुलि जैसी संरचना होती है जो मूत्र द्वार के ऊपर दो वृहद भगोष्ठ के ऊपरी मिलन बिन्दु के पास स्थित होती है। योनिच्छद प्रायः पहले मैथुन (संभोग) के दौरान फट जाता है। हालाँकि यह आवरण कभी-कभी तेज धक्के या अचानक गिरने से भी फट सकता है। इसके अलावा योनि टैम्पॉन को घुसेड़ने या फिर घोड़े पर चढ़ने या साइकिल चलाने, आदि खेल कूद की सक्रिय भागीदारी से भी फट सकता है।
- कुछ औरतों का योनिच्छद संभोग के बाद भी बना रहता है। इसलिए योनिच्छद के होने अथवा न होने की बात को किसी स्त्री के कौमार्य (वर्जिनिटी) या यौन अनुभवों का वास्तविक सूचक नहीं माना जाना चाहिए.
- कार्यशील स्तन ग्रंथि सभी मादा स्तनधारियों का अभिलक्षण है। स्तन ग्रंथियाँ (स्तन) युग्म संरचना हैं जिनमें ग्रंथिल ऊतक और विभिन्न मात्रा में वसा होते हैं। प्रत्येक स्तन का ग्रंथिल ऊतक 15-20 स्तन पालियों (मैमरी लोब्स) में विभक्त होता है। इसमें कोशिकाओं के गुच्छ होते हैं जिन्हें कूपिका कहते हैं (। कूपिकाओं की कोशिकाओं से दुग्ध स्रवित होता है और जो कूपिकाओं की गुहाओं (अवकाशिकाओं) में एकत्र होता है। कूपिकाएँ स्तन नलिकाओं में खुलती हैं। प्रत्येक पालि की नलिकाएँ मिलकर स्तनवाहिनी (मैमरी डक्ट्स) का निर्माण करती हैं। कई स्तन वाहिनियाँ मिलकर एक वृहद स्तन तुंबिका बनाती है जो दुग्ध वाहिनी (लैक्टिफेरस डक्ट) से जुड़ी होती हैं जिससे की दूध स्तन से बाहर निकलता है।