स्त्रीकेसर, गुरूबीजाणुधानी (बीजांड) तथा भ्रूणकोष|Megasporangium (ovule) and embryo sac

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स्त्रीकेसर, गुरूबीजाणुधानी (बीजांड) तथा भ्रूणकोष

स्त्रीकेसर, गुरूबीजाणुधानी (बीजांड) तथा भ्रूणकोष|Megasporangium (ovule) and embryo sac

  


स्त्रीकेसरगुरूबीजाणुधानी (बीजांड) तथा भ्रूणकोष 

  • जायांग पुष्प के स्त्री जनन अंग का प्रतिनिधित्व करता है। जायांग एक स्त्रीकेसर (एकांडपी) या बहु स्त्रीकेसर (बहुअंडपी) हो सकते हैं। जहाँ पर ये एक से अधिक होते हैंवहाँ स्त्रीकेसर आपस में संगलित (युक्तांडपी) हो सकते हैं  या फिर वे आपस में स्वतंत्र (वियुक्तांडपी) . 
  • प्रत्येक स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं वर्तिकाग्रवर्तिकातथा अंडाशय। 
  • वर्तिकाग्रपरागकणों के अवतरण मंच का काम करता है। 
  • र्तिका एक दीर्धीकृत पतला (इकहरा) भाग है जो वर्तिका के नीचे होता है। 
  • स्त्रीकेसर के आधार पर उभरा (फूला) हुआ भाग अंडाशय होता है। अंडाशय के अंदर एक गर्भाशयी गुहा (कोष्ठक) होती है। गर्भाशयी गुहा के अंदर की ओर अपरा (नाड़) स्थित होती है। 
  • अपरा से उत्पन्न होने वाली दीर्घ बीजाणुधानी सामान्यतः बीजांड कहलाती है। एक अंडाशय में बीजांडों की संख्या एक (गेहूँधानआम) से लेकर अनेक (पपीतातरबूज तथा आर्किड) तक हो सकती है।

 

गुरूबीजाणुधानी (बीजांड) 

  • बीजांड एक छोटी सी संरचना है जो एक वृंत या डंठलजिसे बीजांडवृंत कहते हैंद्वारा अपरा से जुड़ी होती है। बीजांड की काया बीजांडवृत्त के साथ नाभिका नामक क्षेत्र में संगलित होती है। अतः यह नाभिका बीजांड एवं बीजांडवृत्त के संधि बिंदु का प्रतिनिधित्व करती है।
  • प्रत्येक बीजांड में एक या दो अध्यावरण नामक संरक्षक आवरण होते हैं। यह अध्यावरण बीजांड को चारों ओर से घेरे होता हैकेवल बीजांडद्वार नामक आयोजित छोटे से रंध्र को छोड़कर अध्यावरण बीजांड को चारों तरफ से घेरे रहता है। बीजांडद्वारी सिरे के ठीक विपरीत निभाग (कैलाजा) होता है जो बीजांड के आधारी भाग का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • अध्यावरणी से घिरा हुआ कोशिकाओं का एक पुंज होता हैजिसे बीजांडकाय कहते हैं। बीजांडकाय केंद्रक की कोशिकाओं में प्रचुरता से आरक्षित आहार सामग्री होती है। बीजांडकाय भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद् बीजांडकाय में स्थित होता है। एक बीजांड मेंसामान्यतः एक अकेला भ्रूणकोष होता है जो एक गुरूबीजाणु से निर्मित होता है।

 

गुरूबीजाणु जनन

  •  गुरूबीजाणु मातृ कोशिकाओं से गुरूबीजाणुओं की रचना के प्रक्रम को गुरूबीजाणुजनन कहते हैं। बीजांड प्रायः एक अकेले गुरूबीजाणु मातृ कोशिका से बीजांडकाय के बीजांडद्वारी क्षेत्र में विलग होते हैं। यह एक बड़ी कोशिका है जो सघन जीवद्रव्य से समाहित एवं एक सुस्पष्ट केंद्रक युक्त होती है। गुरूबीजाणुमातृकोशिका अर्धसूत्री विभाजन से गुजरती है। अर्धसूत्रीविभाजन के परिणाम स्वरूप चार गुरूबीजाणुओं का उत्पादन होता है .


स्त्री (मादा) युग्मको‌द्भिद् 

  • अधिकांश पुष्पी पादपों में गुरूबीजाणुओं में से एक कार्यशील होता है जबकि अन्य तीन अपविकसित (अपभ्रष्ट) हो जाते हैं। केवल कार्यशील गुरूबीजाणु स्त्री (मादा) युग्मकोद्भिद् (भ्रूणकोष) के रूप में विकसित होता है। एक अकेले गुरूबीजाणु से भ्रूणकोष के बनने की विधि को एक-बीजाणुज विकास कहा जाता है। 


भ्रूणकोष का निर्माण  

  1. क्रियाशील गुरूबीजाणु के केंद्रक समसूत्री विभाजन के द्वारा दो केंद्रकी (न्युक्लीआई) बनाते हैंजो विपरीत ध्रुवों को चले जाते हैं और 2-न्युकिल्येट (केंद्रीय) भ्रूणकोष की रचना करते हैं। दो अन्य क्रमिक समसूत्री केंद्रकीय विभाजन के परिणामस्वरूप 4-केंद्रीय (न्युकिल्येट) और तत्पश्चात् 8-केंद्रीय (न्युकिल्येट) भ्रूणकोष की संरचना करते हैं। 

  • सूत्री विभाजन सही अर्थों में मुक्त केंद्रक (न्युकिलयर) हैजो केंद्रकीय विभाजन से तुरंत ही कोशिका भित्ति रचना द्वारा नहीं अनुपालित किया जाता है। 8-न्युकिल्येट चरण के पश्चात् कोशिका भित्ति की नींव पड़ती हैजो विशिष्ट (प्ररूपी) मादा युग्मकोद्भिद् या भ्रूणकोष के संगठन का रूप लेती है। 
  • आठ में से 6-न्युक्लीआई भित्ति कोशिकाओं से घिरी होती हैं और कोशिकाओं में संयोजित रहते हैं। शेष बचे दो न्युक्लीआई ध्रुवीय न्यूक्लीआई कहलाते हैंजो अंडउपकरण के नीचे बड़े केंद्रीय कोशिका में स्थित होते हैं। 
  • भ्रूणकोष के अन्दर कोशिकाओं का वितरण विशिष्टता पूर्ण होता है। बीजांडद्वारी सिरे पर तीन कोशिकाएँ एक साथ समूहीकृत होकर अंडउपकरण या समुच्चय का निर्माण करती हैं। इस अंड (समुच्चय) उपकरण के अंतर्गत दो सहाय कोशिकाएँ तथा एक अंडकोशिका निहित होती है।
  • बीजांडद्वारी छोरजिसे तंतुरूप समुच्चय कहते हैंपर एक विशेष सहाय कोशिकीय स्थूलन होने लगता है जो सहाय कोशिकाओं में पराग नलिकाओं को दिशा निर्देश प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तीन अन्य कोशिकाएँ निभागीय (कैलाजल) छोर पर होती हैंप्रतिव्यासांत (ऍटीपोडाल) कहलाती है। वृहद केंद्रीय कोशिकाजैसा कि पहले बताया गया हैमें दो ध्रुवीय न्युकलीआई होती हैं। 
  • इस प्रकार सेएक प्ररूपी आवृतबीजी भ्रूणकोष परिपक्व होने पर यद्यपि 8-न्युकिलीकृत वस्तुतः 7 कोशिकीय होता है।

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