परमाणु, अणु और रासायनिक अंकगणित | Chemistry Basic Introduction

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परमाणु, अणु और रासायनिक अंकगणित

परमाणु, अणु और रासायनिक अंकगणित | Chemistry Basic Introduction


 

रसायनशास्त्र प्रायः केंद्रिय विज्ञान 

  • रसायन शास्त्र पदार्थ और उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन है। रसायनशास्त्र प्रायः केंद्रिय विज्ञान कहलाती है क्योंकि रसायन शास्त्र का मूल ज्ञान जीवविज्ञान, भौतिक शास्त्र, भूगर्भ विज्ञान, पारस्थितिकी विज्ञान और बहुत अन्य विषयों के अध्ययन के लिए आवश्यक होता है। 
  • यद्यपि रसायनशास्त्र पुरातन विज्ञान है इसकी आधुनिक आधारशिला उन्नीसवी सदी में डाली गई थी। जैव वैज्ञानिक और तकनीकी वैज्ञानिकों ने पदार्थों के छोटे घटकों में विखंडन का विचार दिया और उनके बहुत से भौतिक और रसायनिक गुणधर्मों का वर्णन किया। 
  • रसायनशास्त्र का विज्ञान और तकनीक के बहुत से क्षेत्रों में बहुत महत्व है। उदाहरण के लिए स्वास्थ, औषधि, ऊर्जा और पर्यावरण, खाद्य, कृषि इत्यादि। 
  • जैसा कि आप जानते हैं कि अणु और परमाणु बहुत छोटे होते हैं, हम उन्हें आँखों से नहीं देख सकते, न ही सूक्ष्मदर्शी की सहायता से। अतः यह आवश्यक है कि द्रव्य के जिस नमूने को हम देख सकें और उपयोग में ला सकें उसमें परमाणुओं/अणुओं की बहुत बड़ी संख्या मौजूद हो। रासायनिक अभिक्रियाओं में परमाणु/अणु एक दूसरे से एक निश्चित संख्या अनुपात में संयुक्त होते हैं। अतः यह उचित होगा कि दिए गए द्रव्य के नमूने में अणुओं/परमाणुओं की कुल संख्या ज्ञात हो। हम दैनिक जीवन में अनेक गणना मात्रक प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए हम केलों या अंडों की संख्या 'दर्जन' में बतलाते हैं। रसायन विज्ञान में हम जिस गणना मात्रक का प्रयोग करते हैं उसे 'मोल' कहते हैं, यह बहुत बड़ा होता है 
  • यह मोल संकल्पना की सहायता से संभव है जिसमें तोलकर अपेक्षित अणुओं/परमाणुओं की संख्या ली जा सकती है। प्रयोगशाला में रासायनिक यौगिकों का अध्ययन करने के लिए उन पदार्थों की मात्राओं की जानकारी आवश्यक है जिनमें परस्पर क्रिया होनी है। समीकरणमिति (स्टाइकियोमेट्री stoichiometry) जिसे ग्रीक शब्द stoichion = तत्व और metron = नापना से लिया गया) वह शब्द है जिसका प्रयोग रासायनिक अभिक्रियाओं और यौगिकों के मात्रात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है।

रसायन शास्त्र के महत्व और कार्यक्षेत्र 

रसायन विज्ञान हमारे जीवन के सभी आयामों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। आइए कुछ ऐसे ही क्षेत्र में रसायन विज्ञान के योगदान को समझें। 

1 स्वास्थ और औषधि 

  • इस सदी के तीन मुख्य विकासों ने हमें बिमारी को रोकने और उपचार के लिए प्रेरित किया है। जन स्वास्थ साधन लोगो को संक्रामक बिमारियों से बचाने के लिए, सफाई तंत्रों का निर्माण  करना। एनसथैशिया के साथ सल्यशास्त्र तथा चिकित्सकों को समीवित घातक अवस्था में उपचार के लिए प्रेरित करने में बढ़ा जीन चिकित्सा औषधि में चौथी क्रांति है। (जीन वंशानुगत की एक मूल इकाई है) बहुत सारी स्थितियां जैसे कि सिस्टेटिक फाइब्रोसिस और हीमोफिलीया नवजातों में एकल जीन को हानि पहुंचाते हैं। बहुत अन्य बिमारियों जैसे कि कैंसर, हृदय बीमारी, एड्स और संधिशोध के परिणाम स्वरूप एक या अधिक जीनों, जो कि शरीर की रक्षा में शामिल होती हैं को दुर्बल कर देते हैं। जीन चिकित्सा में इस प्रकार की अव्यवस्था के इलाज व आराम के लिए बीमार कोशिकाओं में चयनित स्वस्थ जीन को पहुंचाया जाता है। इस प्रकार की प्रणाली के लिये चिकित्सक को सम्मलित सभी आणविक घटकों के रसायनिक गुणधर्मों एवं रासायनिक अभिक्रिया के क्रियाविधि का गहन ज्ञान होना चाहिए। 
  • फार्माक्यूटिकल (औषध) उद्योगों में रसायन शास्त्री शक्तिशाली भेषजों की खोज कर रहे हैं जिनका कैंसर, एड्स और अन्य बिमारियां के उपचार में अन्य प्रभाव कम या कोई न हो और औषधियाँ सफलतापूर्वक अंगों के प्रतिरोपण की संख्या में वृद्धि कर सकें।

 2 ऊर्जा और पर्यावरण 

  • ऊर्जा बहुत से रासायनिक प्रक्रमों का सह-उत्पाद होती हैं और जैसे जैसे ऊर्जा के खर्च करने की मांग बढ़ रही है तकनिकी रूप से अमेरिका जैसे विकसित देशों और विकासशील देश जैसे कि भारत, में रसायनशास्त्री ऊर्जा के नये स्त्रोतो का पता लगाने में क्रियाशील है। वर्तमान में ऊर्जा के मुख्य स्त्रोत जीवाश्म ईंधन (कोल, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस) हैं। आज के खर्च के कारण इन ईंधनों को भण्डारण हमारे लिए 50-100 सालों तक रहेगा इसलिए वैक्लपिक संसाध नों का पता लगाना हमारे लिए आवश्यक है। 
  • सौर ऊर्जा भविष्य के लिए ऊर्जा का एक अहम् स्त्रोत है। प्रत्येक वर्ष पृथ्वी पृष्ठ, सूर्य प्रकाश से लगभग 10 गुणा ऊर्जा प्राप्त होती है। लेकिन बहुत सी यह ऊर्जा नष्ट हो जाती है क्योंकि यह आकाश में वापिस परावर्तित हो जाती है। विगत तीस सालों की हुई खोज से ज्ञात हुआ है कि सौर ऊर्जा को प्रभावित रूप से नियंत्रण करने की दो विधियाँ हैं। एक प्रकाशीकीय बोल्टिक सेल का उपयोग करके सूर्य प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित करना। और दूसरा सूर्य प्रकाश का उपभोग करके पानी से हाइड्रोजन प्राप्त करना। हाइड्रोजन को ईंधन सेल में प्रयोग करके विद्युत उत्पन्न की जाती है। 2050 तक यह कल्पना की जाती है कि हमारी आवश्यकताओं के 50 प्रतिशत से अधिक सौर ऊर्जा की आपूर्ति होगी। ऊर्जा का एक अन्य अहम स्त्रोत नाभिकीय विखंडन है, लेकिन विखंडन प्रक्रमों से उत्पन्न रेडियोधर्मी अपशिष्टों से पर्यावरण के प्रदूषण के कारण अमेरिका में नाभिकीय उद्योग का भविष्य अनिश्चित है। रसायनशास्त्री नाभिकीय अपशिष्ट को निपटाने के लिए उचित विधियों की खोज में सहायता कर सकते हैं। संलयन सूर्य और अन्य तारों में होने वाला प्रक्रम हैं जिसमें हानिकारक बिना अपशिष्ट पदार्थों के उत्पन्न हुये अत्यधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। अगले 50 वर्षों में ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्त्रोतों में नाभिकीय संलयन भी होगा।

 

  • ऊर्जा उत्पादन तथा ऊर्जा उपभोगिता हमारी पर्यावरणीय गुणवता से पूर्णतः जुड़ी हुई हैं। जीवाश्मीय ईंधन के जलाने से मुख्य हानि यह है कि ये कार्बन-डाइआक्सॉइड छोड़ते हैं जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है। (जो कि पृथ्वी के वायुमंडल को गर्म करने को प्रोत्साहित करती है)इसके साथ-साथ सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड भी छोड़ते हैं जिसके फलस्परूप अम्लीय वर्षा तथा धुंध बनती है। ऊर्जा दक्षीय स्वचालित वाहनों तथा अधिक प्रभावी उत्प्रेरी परिवर्तकों के उपयोग द्वारा, हम हानिकारक स्वउत्सर्जनों के अत्यधिक मात्रा को कम कर सकते हैं तथा अधिक यातायात वाले क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता को सुधार सकते हैं। इनके साथविद्युतीय कार, जो कि अधिक देर तक चलने वाली बैटरियों से संचालित हों, अगली सदी में अधिक प्रचलित होनी चाहिए जिनके उपयोग से प्रदूषण को कम से कम किया जा सकेगा।

 

3 द्रव्यात्मक और प्रौद्योगिकी 

  • रासायनिक खोज और इक्कीसवी सदी के विकास ने नये पदार्थ दिये हैं जिससे हमारे जीवन में अत्यधिक सुधार हुआ है। और अगिनत तरीको से हमारी विकसित प्रोद्योगिकी में सहायता की है। बहुलक (नाइलॉन और रबड़ शामिल है) सिरेमिक्स (जैसे की खाना पकाने के बर्तन) द्रव क्रिस्टल (जैसे जो कि इलेक्ट्रानिक यंत्रों में) चिपकाने वाले और परत चढ़ाने (उदाहरण के लिए लेटेक्स् पेंट) कुछ उदाहरण हैं. 
  • आने वाले भविष्य के लिए क्या भंडारण हैं? एक सम्भावना कक्षीय तापमान पर अधिसुचालक है। कापर तारों में विद्युत का वाहन होता है, दूसरे जो कि पूर्ण रूप में चालक नहीं है। इसके परिणामस्वरूप लगभग 20 प्रतिशत विद्युत ऊर्जा की ऊष्मा के रूप में हमारे घरों और पावर स्टेशनों के बीच में हानि हो जाती है। यह अत्यधिक फजूलखर्ची है। अधिसुचालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें विद्युत प्रतिरोधिता नहीं होती है और जो कि ऊर्जा की हानि हुए बगैर विद्युत प्रवाहित करते हैं। 

4 खाद्य और कृषि 

  • संसार में निरंतर शीघ्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या को किस प्रकार खिलाया जा सकता है? गरीब देशों में कृषि सक्रियता हमारी कार्य बलों का लगभग 80 प्रतिशत है और औसतन परिवार को औसतन बजट की आधी पूंजी खाद्य सामग्री पर व्यय हो जाती है। इससे राष्ट्र के संसाधन व्यर्थ चले जाते हैं। कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक है मिट्टी की गुणवत्ता, कीड़े और बीमारियां जो कि फसल को नष्ट कर देते हैं और खरपतवार पोषकों को खत्म कर देते हैं। सिचाई के अतिरिक्त कृषक फसल की पैदाबार में वृद्धि करने के लिए उरवरकों और कीटनाशकों पर निर्भर रहते हैं।

 

द्रव्य की कणिकीय प्रकृति 

  • सभी द्रव्य प्रकृति में कण होते हैं। इसका आधारिक अर्थ यह है कि द्रव्य के दो सिरों के बीच में रिक्त होता है जिसमें कोई द्रव्य नहीं होता। इस विज्ञान में इसे द्रव्य की परमाणुक प्रकृति कहते हैं। सामान्यतः यह माना जाता है कि इस तथ्य सबसे पहले लगभग 440 B.C. में ग्रीक दार्शनिक ल्यूसिपस तथा उसके शिष्य डेमोक्रिटस ने दिया था। यद्यपि महर्श कनाड ने इससे पहले (500 BC) में द्रव्य के परमाणुकीय संकल्पना को प्रस्तावित किया था और द्रव्य के सूक्ष्मतम कण को "परमाणु" नाम दिया था।

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