परमाण्विक संरचना | परमाणु के मौलिक कण |Atomic structure in Hindi

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परमाण्विक संरचना | परमाणु के मौलिक कण |Atomic structure in Hindi



 


परमाण्विक संरचना 

  • पदार्थ की संरचना, संघटन और गुणधर्मों के अध्ययन को रसायन विज्ञान कहते हैं। जैसा कि आप जानते हैं पदार्थ परमाणुओं से बना है, अतः परमाणु की संरचना जानना बहुत महत्वपूर्ण है। आप पिछली कक्षाओं में पढ़ चुके हैं कि परमाणु की सबसे पहली संकल्पना (पदार्थ का सबसे सूक्ष्म अभाज्य भाग) प्राचीन भारतीय और ग्रीक दार्शनिकों (600-400BC) ने की थी। उस समय कोई प्रयोगात्मक प्रमाण नहीं होते थे। उनकी परमाणु की यह संकल्पना इस विचार पर आधारित थी कि 'यदि हम पदार्थ को विघटित करते जाएँ तो क्या होगा?' उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में जॉन डाल्टन ने अपने परमाण्विक सिद्धांत से इस संकल्पना पर पुनर्विचार किया। यह सिद्धांत रासायनिक संयोजन के नियमों की सफलतापूर्वक व्याख्या कर सकता था। बाद के प्रयोगों ने यह दिखाया कि परमाणु अभाज्य नहीं है परन्तु उसकी एक आन्तरिक संरचना है।

 

परमाणु के मौलिक कण 

  • सन् 1897 में जे. जे. थाम्सन ने इलेक्ट्रॉन का परमाणु के घटक के रूप में आविष्कार किया। उसने निर्धारित किया कि इलेक्ट्रान पर एक ऋण आवेश होता है और उसका द्रव्यमान परमाणु की तुलना में बहुत कम होता है। चूँकि परमाणु विद्युतीय रूप से उदासीन होता है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि परमाणु में धन आवेश का स्रोत होना चाहिए। इससे जल्द ही प्रोटान का प्रयोगात्मक आविष्कार हुआ, यह धनावेशित कण अब परमाण्विक कण है। प्रोटान, इलेक्ट्रान से लगभग 1840 गुना भारी पाया गया। अगले प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि परमाण्विक द्रव्यमान, केवल प्रोटान और इलेक्ट्रान के कुल द्रव्यमान से अधिक होता है। उदाहरणार्थ, हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का दुगना अनुमानित किया गया, परन्तु वास्तव में वह हाइड्रोजन परमाणु द्रव्यमान का चार गुना पाया गया। इससे उदासीन कणों की उपस्थिति का सुझाव आया, जिनका द्रव्यमान प्रोटान के द्रव्यमान के तुल्य है। सर जेम्स चॉडविक ने सन 1932 में इस उदासीन कण का आविष्कार किया और इसे न्यूट्रॉन नाम दिया। अतः हम कह सकते हैं कि परमाणु अभाज्य नहीं हैं बल्कि ये तीन मौलिक कणों से बने हैं जिनके गुण सारणी  में दिए गए हैं।
परमाणु के मौलिक कण

इन छोटे कणों का बना होने के कारण परमाणु की एक आंतरिक संरचना होनी चाहिए। 


परमाणु क्रमांक, परमाणु द्रव्यमान, समस्थानिक व समभारी 

  • सभी परमाणुओं के प्रोटानों और न्यूट्रानों की संख्या द्वारा पहचाना जा सकता है। "प्रत्येक परमाणु के केन्द्रक में उपस्थित प्रोट्रोनों की संख्या को परमाणु क्रमांक कहते है।" उदासीन परमाणु में प्रोटानों की संख्या इलेक्ट्रानों की संख्या के बराबर होती है। इसलिये परमाणु क्रमांक परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रानों की संख्या को इंगित करता है। परमाणु की रासायनिक समानताओं को एकमात्र परमाणु संख्याओं द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये नाइट्रोजन का परमाणु क्रमांक 7 होता है। इसका अर्थ प्रत्येक उदासीन नाइट्रोजन परमाणु में 7 प्रोटॉन व 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं। या इसके देखने का दूसरा रास्ता यह कि ब्रहमाण में प्रत्येक परमाणु जो 7 प्रोटान रखता है उसका उचित नाम नाइट्रोजन है। एक तत्व के परमाणु के केन्द्रक में उपस्थित प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों की कुल संख्या परमाणु द्रव्यमान संख्या कहलाती है। हाइड्रोजन के बहुत प्रचलित रूप को छोड़ कर जिसमें एक प्रोटॉन तथा कोई न्यूट्रॉन नहीं होता है। शेष सभी परमाणुओं के केन्द्रक प्रोटॉन व न्यूट्रान रखते हैं। 

सामान्यतया द्रव्यमान संख्या को इस प्रकार प्रदर्शित करते हैं- 

द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉन की संख्या न्यूट्रान की संख्या = परमाणु क्रमांक + न्यूट्रॉन की संख्या

 

  • एक परमाणु में द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक के अन्तर न्यूट्रॉन की संख्या के समान होता है। या (A - Z = न्यूट्रान की संख्या) उदाहरण के लिए फ्लोरीन की द्रव्यमान संख्या 19 तथा परमाणु क्रमांक 9 है (केन्द्रक में 9 प्रोटॉन दर्शाता है) इसलिये फ्लोरीन के परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या 19-9 = 10 है। ध्यान रखें कि परमाणु क्रमांक न्यूट्रॉन की संख्या और द्रव्यमान संख्या धनात्मक पूर्ण संख्या (integers) होती है।

 

  • एक दिये हुये तत्व के सभी परमाणु समान द्रव्यमान रखते हैं। अधिकतर तत्व दो या अधिक समास्थानिक रखते हैं। तत्वों के वैसे परमाणु जिनका परमाणु क्रमांक समान व परमाणु द्रव्यमान भिन्न होते हैं समस्थानिक कहलाते हैं। उदाहरण के लिये हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं। एक को साधारण रूप में हाइड्रोजन कहते हैं जिसमें एक प्रोटॉन व कोई न्यूट्रान नहीं होता है।

 

आरम्भिक मॉडल 

  • परमाणु अभाज्य नहीं है- यह प्रमाणित हो जाने के बाद वैज्ञानिकों ने परमाणु की संरचना को समझने के प्रयास शुरू किए। इसके लिए कई मॉडल प्रतिपादित किए गए। सबसे पहला मॉडल जे.जे. थाम्सन का था।

 

1 थाम्सन का मॉडल 

  • विसर्जन नली के प्रयोगों के आधार पर थाम्सन ने बताया कि परमाणु एक धनावेशित गोला है जिसमें छोटे-छोटे ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन बिखरे रहते हैं। इस मॉडल (चित्र 2.1) को प्लम पुडिंग मॉडल कहा गया। धनावेशित पुडिंग (केक) पर इलेक्ट्रान प्लम (चेरी) की तरह होते हैं। इसे कभी-कभी तरबूज मॉडल भी कहा जाता है। तरबूज का लाल रसदार भाग धनात्मक हिस्सा है और बीज इलेक्ट्रॉन को निरूपित करते हैं। 


2 रदरफोर्ड के प्रयोग 

  • अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने 'सोने की पत्ती का प्रयोग' या 'a- किरण प्रकीर्णन प्रयोग' द्वारा थाम्सन के परमाणु संरचना मॉडल का परीक्षण किया। इस प्रयोग में उन्होंने तेज गति वाले अल्फा कणों (धनावेशित हीलियम आयन) को सोने की पतली पत्ती पर डाला। उनका अनुमान था कि अल्फा कण सोने की पत्ती के पार निकल कर फोटोग्राफिक प्लेट पर टकराएंगे पर असलियत में प्रयोग के परिणाम  चौंकाने वाले थे। देखा गया कि बहुत से - कण पत्ती के पार न निकल कर अपने पथ से विचलित हो गए। कुछ कण कम विचलित हुए, कुछ का विचलन अत्यधिक था और लगभग 10,000 में से एक -कण पीछे की ओर लौटा यानि उसका विचलन 180° कोण से हुआ। 


इन परिणामों से रदरफोर्ड ने निष्कर्ष निकाला किः 

  • परमाणु के केन्द्र में घना धनावेशित भाग होता है जिसे उन्होंने नाभिक नाम दिया। 
  • परमाणु का सारा धनावेश और अधिकतम द्रव्यमान नाभिक में होता है। 
  • परमाणु का शेष भाग लगभग खाली होता है उसमें बहुत छोटे ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन होते हैं 

 

किन्तु रदरफोर्ड मॉडल के साथ एक समस्या 

  • मैक्सवेल के विद्युत चुबंकीय सिद्धांत के अनुसार त्वरित आवेशित कणों को विद्युत चुंबकीय विकिरण का उत्सर्जन करना चाहिए जिससे उसकी ऊर्जा कम होती जाएगी। चूँकि परमाणु में इलेक्ट्रान भी आवेशित त्वरित कण है इसलिए उसकी भी ऊर्जा कम होती जानी चाहिए। परिणामतः नाभिक के चारों ओर घूमता इलेक्ट्रॉन सर्पिल करते हुए नाभिक में पहुँच जाना चाहिए  और परमाणु का अस्तित्व खत्म हो जाना चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं होता है, अतः रदरफोर्ड का मॉडल परमाणु के स्थायित्व को नहीं समझा पाता। 

  • अगला प्रयास रदरफोर्ड के एक छात्र नील्स बोर का था। इस मॉडल में परमाणु के 'इलेक्ट्रान की ऊर्जा का क्वाण्टमीकरण' की संकल्पना का प्रयोग किया गया। क्योंकि यह तथ्य इाइड्रोजन परमाणु के लाइन स्पेक्ट्रम से प्रतिपादित हुआ, इसलिए स्पेक्ट्रम का अर्थ जानना आवश्यक है। इसके लिए हम पहले विद्युत चुम्बकीय विकिरणों की प्रकृति के बारे में जानकारी लेंगे।

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