विद्युत चुंबकीय विकिरण
- विद्युत चुंबकीय विकिरण एक प्रकार की ऊर्जा है। आकाश में तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन और संचरण होता है। ये तरंगें विद्युतीय और चुंबकीय स्वभाव की होती हैं। इनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। दृश्य प्रकाश, ऊष्मा विकिरण, X- किरणें, गामा किरणें, रेडियो तरंग, विद्युतचुंबकीय विकिरणों के उदाहरण हैं। मैक्सवेल के सिद्धांत के अनुसार विद्युत चुंबकीय विकिरण में विद्युत और चुबंकीय क्षेत्र एक दूसरे के लम्बवत् दोलन करते हैं। ये दोनों विकिरण की संचरण रेखा के लम्बवत् होते हैं।
विद्युत चुंबकीय विकिरणों के अभिलाक्षणिक प्राचल
विद्युत चुबंकीय
विकिरणें कई प्राचलों द्वारा अभिलक्षित की जाती हैं, ये हैं:
आयाम :
- तरंग का आयाम इसके शीर्ष की ऊँचाई या द्रोणी गहराई है या तरंग के दोलन की अधिकतम ऊँचाई है।
तरंगदैर्ध्य :
- दो तरंग शीर्षो या तरंगदैर्थों के बीच की रेखीय दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है इसे ग्रीक अक्षर लैम्डा (λ) से प्रदर्शित किया जाता है .
आवृत्ति :
- तरंग शीर्षो या तरंगदैर्यों की वह संख्या जो एक बिन्दु से एक सेकण्ड में गुजरती है। इसे ग्रीक अक्षर न्यू (v) से दर्शाया जाता है
तरंग संख्या :
- प्रति इकाई लम्बाई में तरंगों की संख्या को तरंग संख्या कहा जाता है। इसे (न्यू बार) से प्रदर्शित करते हैं, यह तरंगदैर्ध्य के व्युत्क्रम बराबर होता है।
विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम
- अभिलक्षणों (तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति और तरंग संख्या) के आधार पर विद्युत चुंबकीय विकिरणें कई प्रकार की होती हैं, ये सब मिलकर विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम बनाती हैं। स्पेक्ट्रम के जिस भाग को हम देख सकते हैं उसे दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं और यह पूर्ण स्पेक्ट्रम का बहुत छोटा भाग है।
लाइन स्पेक्ट्रम
- आपको पता है कि सूर्य की किरण को प्रिज्म के माध्यम से देखने पर बैंगनी से लाल तक, रंगों का एक परास (VIBGYOR) स्पेक्ट्रम (इन्द्रधनुष) की शक्ल में दिखाई देता है। इसे सतत स्पेक्ट्रम कहते हैं क्योंकि प्रकाश की तरंगदैर्ध्य अविरल बदलती है। आइए दूसरा उदाहरण लें। गुणात्मक विश्लेषण में धनायनों की पहचान के लिए उनका लौ (फ्लेम) परीक्षण किया जाता है। सोडियम के यौगिक लौ को दीप्त पीला रंग, कॉपर के हरे रंग और स्ट्रान्शियम के गुलाबी लाल रंग की लौ देते हैं। अगर इस प्रकाश को प्रिज्म के माध्यम से देखें तो वह लाइनों में विभाजित हो जाता है। इसे लाइन स्पेक्ट्रम या रेखा स्पेक्ट्रम कहते हैं।
1 हाइड्रोजन परमाणु का लाइन स्पेक्ट्रम
- विसर्जन नली में कम दाब पर हाइड्रोजन गैस में जब विद्युत विसर्जन प्रवाहित किया जाता है तो कुछ प्रकाश निकलता है। इस प्रकाश को प्रिज्म में से गुजारने पर वह पाँच लाइनों में बँट जाता है। इसे हाइड्रोजन का लाइन स्पेक्ट्रम कहते हैं
बोर मॉडल
सन 1913 में नील्स बोर (1885-1962) ने परमाणु का एक और मॉडल प्रतिपादित किया जिसमें इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथ में घूमते हैं। यह मॉडल कुछ अभिधारणाओं पर आधारित है, ये निम्नलिखित हैं:
- 1. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित वृत्ताकार पथों में घूमते हैं । इन वृत्ताकार पथों को कक्षा (orbits) कहा गया और यह भी कि जबतक इलेक्ट्रॉन एक निश्चित कक्षा में घूमता है उसकी ऊर्जा नहीं बदलती (या ऊर्जा निश्चित रहती है)। इसलिए इन कक्षाओं को ऊर्जा-स्तर स्थाई कक्षाएँ या स्थाई अवस्थाएँ या अविकिरणकारी कक्षाएँ कहा गया।
तरंग-कण द्वैतता
- प्रकाश के कुछ गुण धर्मों जैसे परावर्तन और अपवर्तन की व्याख्या प्रकाश की तरंग प्रकृति के आधार पर की जा सकती है जबकि कुछ अन्य गुणधर्म जैसे प्रकाश विद्युतीय प्रभाव और प्रकाश का प्रकीर्णन, प्रकाश कण प्रकृति के आधार पर ही समझाए जा सकते हैं। अतः प्रकाश का द्वैत स्वभाव होता है, उसमें तरंग और कण दोनों के गुणधर्म होते हैं। यानि कुछ परिस्थितियों में वह तरंग के गुणधर्म दिखाती है और कुछ में कण के।
- सन 1923 में एक युवा फ्रेंच भौतिकविज्ञ, लुई दी-ब्रॉगली, ने कहा कि प्रकाश की तरह पदार्थ के कणों को भी दोहरा व्यवहार प्रदर्शित करना चाहिए। उसने प्रतिपादित किया कि द्रव्य कणों का तरंग व्यवहार गणितीय रूप में भी दिया जा सकता है।
हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का नियम
पदार्थ और विकिरण
के द्वैत स्वभाव के मुख्य परिणाम का आविष्कार बर्नर हाइज़ेनबर्ग ने 1927 में किया।
उन्होंने उसका नाम अनिश्चितता का नियम (uncertainty principle) रखा। इसके
अनुसारः
- एक ही समय में किसी इलेक्ट्रॉन की स्थिति और उसका आघूर्ण (वेग) परिशुद्ध रूप से ज्ञात करना सम्भव नहीं है।
- सरल शब्दों में- अगर आप कण की परिशुद्ध स्थिति ज्ञात करते हैं तो उसका आघूर्ण कम परिशुद्ध ज्ञात होगा और विलोमत.
परमाणु का तरंग यांत्रिकी मॉडल
- सन् 1926 में ऑस्ट्रियन भौतिकविज्ञ इर्विन श्रोडिंगर ने परमाणु का तरंग यांत्रिकी मॉडल प्रतिपादित किया। यह मॉडल एक गणितीय मूल समीकरण है जो कुछ अभिधारणाओं पर आधारित है। इन अभिधारणाओं का चिरप्रतिष्ठित भौतिकी में कोई आधार नहीं है, इनकी सफलता इनसे प्राप्त परिणामों की सफलता के कारण ही है। इस मॉडल के अनुसार, परमाणु में इलेक्ट्रॉन की गति को एक गणितीय फलन के रूप में वर्णित किया जा सकता है। इसे तरंग फलन, (ग्रीक अक्षर साइ) कहते हैं।
तत्वों का इलेक्ट्रानिक विन्यास
परमाणु में एक धनावेशित नाभिक होता है जो इलेक्ट्रॉनों से घिरा होता
है, और इलेक्ट्रॉन अलग-अलग आकार और आकृति के कक्षकों में होते
हैं। ये कक्षक विभिन्न कोशों और उपकोशों के भाग होते हैं जिन्हें तीन क्वांटम
संख्याओं n, 1 और m₁ से अभिलाक्षणित किया
जाता है। आइए अब इन कोशों और उपकोशों में इलेक्ट्रॉनों का वितरण
देखें। इलेक्ट्रानों का यह वितरण इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहलाता है और यह तीन नियमों
द्वारा निर्धारित होता है।
1 ऑफबाऊ (क्रमिक रचना) सिद्धांत
- यह नियम परमाणु की ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरे गये स्तर से संबंधित होता है। इलेक्ट्रॉन कक्षकों को इस प्रकार भरते हैं कि परमाणु की कुल ऊर्जा निम्नतम हो। दूसरे शब्दों में परमाणु में इलेक्ट्रॉनों को बढ़ती ऊर्जा के क्रम में भरा जाता है।
2 पाउली अपवर्जन सिद्धांत
- यह सिद्धांत किसी कक्षक में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के स्पिन से संबंधित है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी परमाणु में उपस्थित दो इलेक्ट्रॉनों की चारों क्वांटम संख्याएँ एकसमान नहीं हो सकती हैं।
3 हुंड का नियम
- यह नियम इलेक्ट्रॉनों के समान ऊर्जा वाले कक्षकों (यानि उपकोश के घटक) में वितरण से संबंधित है। इस नियम के अनुसार- यदि एक ही उपकोश के कई कक्षक उपलब्ध हैं तो इलेक्ट्रॉन इस प्रकार वितरित होते हैं कि सभी कक्षकों में समान स्पिन वाला एक इलेक्ट्रॉन पहुँच जाए।